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________________ १७ क्रिया-कोश ६६.१३.२ कायिकी क्रियापंचक और कषाय समुद्घात :-- एवं कसायसमुग्घायोवि भाणियव्वो ( जहा वेयणासमुग्घाए)। -पण्ण ० प ३६ । सू२१५५ । पृ० ५२६ कषाय समुद्घात करने वाले औघिक जीव तथा दण्डक के जीव के सम्बन्ध में कायिको आदि क्रियापंचक की वक्तव्यता उसी प्रकार कहनी चाहिए जैसी वक्तव्यता वेदना समुद्घात करने बाले जीव और दण्डक के जीव के सम्बन्ध में कही गई है। .६६.१३.३ कायिकी क्रियापंचक और मारणांतिक समुद्घात : जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए समोह णित्ता जे पोग्गले निच्छुभइ xxx सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि। एवं नेरइए वि, xxx सेसं चेव जाव पंचकिरिया वि । असुरकुमारस्स जहा जीवपाए xxx सेसं तं चेव जहा असुरकुमारे, एवं जाव वेमाणिए, णवरं एगिदिए जहा जीवे निरवसेसं । -पग्ण० प ३६ । सू २१५६-५८ । पृ० ५२६-३० मारणांतिक समुद्घात करने वाले औधिक जीव तथा दंडक के जीव के सम्बन्ध में कायिको आदि क्रियापंचक की वक्तव्यता उसी प्रकार कहनी चाहिए जैसी वक्तव्यता वेदना समुद्घात करने वाले औधिक जीव और दण्डक के जीव के सम्बन्ध कही गई है। ६६.१३.४ कायिकी क्रियापंचक और वैक्रियस मुद्घात : जीवे णं भंते ! वेउव्वियसमुग्घाए णं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले निच्छभइ xxx सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि। एवं नेरइए वि । xxx। तं चेव जहा जीवपए। एवं जहा नेरइयस्स तहा असुरकुमारस्स, xxx एवं जाव थणियकुमारस्स। वाउकाइयस्स जहा जीवपए xxxi पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स निरवसेसं जहा नेरझ्यस्स । मणूसवाणमंतरजोइसियवेमाणियस्स निरवसेसं जहा असुरकुमारस्स । -- पण्ण० प ३६ । सू. २१५६ से २१६४ । पृ० ५३० . वैक्रिय समुद्घात करने वाले औधिक जीव तथा वैक्रिय समुद्घात करने योग्य दंडक के जीव के सम्बन्ध में कायिकी आदि क्रियापंचक की वक्तव्यता उसी प्रकार कहनी चाहिए जैसी वक्तव्यता वेदना समुदघात करने वाले औघिक जीव और दंडक के जीव के सम्बन्ध में कही गई है। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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