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क्रिया - कोश
'६६ १३ कायिकी क्रियापंचक और समुद्घात
६६ १३१ कायिकी क्रियापंचक और वेदना समुद्घात :--
जीवे णं भंते ! वेयणासमुग्याएणं समोहए, समोहणित्ता जे पोग्गले निच्छुभइ XXX 1 ते ते ! पोग्गला निच्छूढा समाणा जाई तत्थ पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणंति, वत्तति, लेसेंति, संघाएं ति संघट्टेति परियार्वेति किला मेंति उद्दवेंति, तेहितो णं भंते! से जीवे कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंच करिए | ते णं भंते! जीवा ताओ जीवाओ कइ किरिया ? गोथमा ! सिय तिकिरिया, सिय चडकिरिया, सिय पंचकिरिया । से णं भंते! जीवे ते य जीवा अण्णेसिं जीवाणं परंपराधापणं कइ किरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि ।
नेरइए णं भंते! वेयणासमुग्धापणं समोहए एवं जहेव जीवे, णवरं नेरइयाभिलावी, एवं निरवसेसं जाव वैमाणिए ।
-पण्ण० प ३६ । सू २१५३-५४ | १० ५२६
वेदना समुद्घात से समवहत - वेदना समुद्घात करने वाला जीव वेदना समुदघात करके जिन पुद्गलों को बाहर निकालता है वे बाहर निकाले हुए पुद्गल तत्र स्थित प्राणभूत-जीव सत्त्वों का हनन करते है, हेर-फेर करते हैं, थोड़ा स्पर्श करते हैं, परस्पर संघात उत्पन्न करते हैं, तीन संघात उत्पन्न करते हैं, पीड़ा उत्पन्न करते हैं, क्लान्त करते हैं, प्राणवियोग करते हैं तो उन जीवों की अपेक्षा उन पुद्गलों से वेदना समुद्घात वाले जीव के कदाचित तीन क्रिया, कदाचित् चार क्रिया, कदाचित पाँच क्रिया होती है ।
वेदना समुद्घात से निर्गत पुद्गलों द्वारा हननादि किये जाने वाले जीवों को उस वेदना समुद्घात करने वाले जीव की अपेक्षा कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है ।
वेदना समुद्घात करने वाले जीव के तथा समुद्घात से निर्गत पुद्गलों द्वारा हननादि किये जाने वाले जीवों के साथ अन्य जीवों का परम्पर-आघात होने से उस वेदना समुद्घात करने वाले जीव के तथा समुद्घात से निर्गत पुद्गलों द्वारा हननादि किये जाने वाले जीवों के परम्पराधातित अन्य जीवों की अपेक्षा कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है।
वेदना समुद्घात करने वाले दंडक के सभी जीवों के सम्बन्ध में उपर्युक्त औधिक जीव की तरह आलापक कहने चाहिए ।
" Aho Shrutgyanam"