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क्रिया - कोश
१६५ निव्वन्ति ते वि य णं जीवा जाव- पंचहिं पुट्ठा ; जे वि य से जीवा अहे वीससाए पश्च्चोवयमाणस्स जाव - पंचहि पुट्ठा ।
जहा कंदे, एव जावं बीयं ।
— भग० श १७ । उ १ । प्र ७ से १० । पृ० ७५४-५५ यदि कोई पुरुष वृक्ष के मूल को कँपावे तथा नीचे गिरावे तो उस वृक्ष के मूल को कँपाते हुए - नीचे गिराते हुए पुरुष को कायिकी आदि पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । जिन जीवों के शरीर से मूल, कंद, स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल तथा बीज बने उन जीवों को कायिकी आदि पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं ।
तत्पश्चात् वह वृक्ष का मूल अपने गुरुभार से नीचे गिरता है तथा नीचे गिरता हुआ मूल जीवों का हनन करे यावत् प्राणवियोग करे तो उस पुरुष को चार क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । जिन जीवों के शरीर से कंद यावत् बीज बने उन जीवों को चार क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । जिन जीवों के शरीर से वृक्ष का मूल बना उन जीवों को पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । विखसा - स्वाभाविक रूप से अपने गुरुभार से नीचे गिरते हुए वृक्ष के मूल के जो जीव उपग्राहक - उपकारक होते हैं उन जीवों को भी पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं ।
यदि कोई पुरुष वृक्ष के कंद को कँपावे तथा नीचे गिरावे तो उस वृक्ष के कंद को कँपाते हुए - नीचे गिराते हुए पुरुष को कायिकी आदि पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । जिन जीवों के शरीर से मूल, कंद, स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल तथा बीज बने उन जीवों को कायिकी आदि पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं ।
तत्पश्चात् वह वृक्ष का कंद अपने गुरुभार से नीचे गिरता है तथा नीचे गिरता हुआ कंद जीवों का हनन करे यावत् प्राणवियोग करे तो उस पुरुष को चार क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं। जिन जीवों के शरीर से मूल, स्कंध यावत् बीज बने उन जीवों को चार क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । जिन जीवों के शरीर से वृक्ष का कंद बना उन जीवों को पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । विसा -- स्वाभाविक रूप से अपने गुरुभार नीचे गिरते हुए वृक्ष के कंद के जो जीव उपग्रहक — उपकारक होते हैं उन जीवों को भी पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं ।
जिस प्रकार कंद का आलापक कहा उसी प्रकार स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल तथा बीज बने उन जीवों की भी कायिकी आदि पाँच क्रियाएँ स्पष्ट होती हैं ।
विश्लेषण -- टीका - एतानि च फलद्वारेण पट् क्रियारथानान्युक्तानि, मूलादियपि षडेव भावनीयानि । 'एवं जाव बीयं' ति अनेन कन्दसूत्राणीव स्कन्धत्वक्शालप्रवालपत्रपुष्प फलबीजसूत्राण्यध्येयानीति सूचितम् ।
क्रमांक *६६·११ के विश्लेषण में जैसे छः क्रियास्थान के आलापक कहे गये हैं उसी प्रकार मूल यावत् बीज के विषय में भी छः-छः क्रियास्थान आलापक समझने चाहिए ।
"Aho Shrutgyanam"