SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० क्रिया-कोश ६६८ कायिकी क्रियापंचक और शरीर, इन्द्रिय व योग का निर्माण करता हुआ जीव : जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चकिरिए, सिय पंचकिरिए एवं पुढविकाइए वि, एवं–जाव-- मणुस्से! जीवा णं भंते ! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणा कइ किरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि ; एवं पुढविकाइया वि, एवं--जावमणुस्सा। एवं वेउव्वियसरीरेण घि दो दंडगा, नवरं जस्स अस्थि वेउब्वियं । एवं- जाव-कम्मगसरीरं। एवं सोइदियं--जाव- फासेंदियं । एवं मणजोगं, वइजोगं, कायजोगं ।। जस्स जं अस्थि तं भाणियव्वं, एए एगत्तपुहुत्तेणं छव्वीसं दंडगा। -भग० श १७ । उ १ । प्र १४.१५ । पृ० ७५५ औदारिक शरीर का निर्माण करते हुए - बाँधते हुए-जीव के कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव से लेकर मनुष्य जीव तक कहना चाहिए। औदारिक शरीर का निर्माण करते हुए - बाँधते हुए जीवों के कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों यावत् मनुष्य जीवों के संबंध में ऐसा ही कहना चाहिए। . वैक्रिय शरीर का निर्माण करते हुए—बाँधते हुए जीव या जीवों के कदाचित तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है लेकिन जिसके वैक्रिय शरीर होता है या बैंक्रिय शरीर बनाने की योग्यता होती है उन दंडकों का विवेचन करना चाहिए । इसी प्रकार आहारक शरीर के संबंध में कहना चाहिए लेकिन जीव तथा मनुष्य के संबंध में ही आलापक कहने चाहिए क्योंकि आहारक शरीर अन्य दंडको में नहीं होता है। __ इसी प्रकार तैजस या कार्मण शरीर का निर्माण करते हुए.-बाँधते हुए जीव या जीवों के कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है। दंडक के सभी जीवों के संबंध में कहना चाहिए, क्योंकि तेजस और कार्मण शरीर सभी जीवदंडकों के होता है। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy