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क्रिया-कोश इसी प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षु रिन्द्रय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय, मनोयोगवचनयोग या काययोग का निर्माण करते हुए-बाँधते हुए जीव या जीवों के कदाचित् तीन, कदाचित चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है । लेकिन जिस जोव या जीवों के जो इन्द्रिय तथा योग होते हैं उस इन्द्रिय या योग के सम्बन्ध में आलापक कहना चाहिये ।।
औदारिक-वैक्रिय-आह रक-तेजस-कार्मण शरीर ; श्रोत्रेन्द्रिय-चक्षुरिन्द्रिय-नाणेन्द्रियर सेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रिय ; मनोयोग-वचनयोग-काययोग को बाँधता हुआ जीव-ऐसे तेरह आलापक हुए । एकवचन-बहुवचन को ग्रहण करने से छब्बीस आलापक होते है ।
६६ ६ कायिक क्रियापंचक और श्वास-निश्वास लेते हुए स्थावर जीव :
पुढविक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइयं चेव आणममाणे वा पाणममाणे वा ऊससमाणे वा णीससमाणे वा कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए । पुढविकाइए णं भंते ! आउकाइयं आणममाणेवा०? एवं चेव, एवं-- जाव -वणस्सइकाइयं ; एवं आउक्काइएण वि सव्वे भाणियव्वा ; एवं तेउक्काइएण वि एवं वाउकाइएण वि;-जाव-वणस्सइकाइए णं भंते ! वणस्सइकाइयं चेव आणममाणे वा० पुच्छा ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ।
-भग० श ६ ! उ ३४ । प्र १२-१३ । पृ० ६१२ पृथ्वीकायिक जीव को श्वास या निःश्वास में पृथ्वीकायिक जीवों को ग्रहण करते हुए कदाचित तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव को श्वास-निःश्वास में अप्कायिक-अग्निकायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिक जीवों को ग्रहण करते हुए कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है।
इसी प्रकार अप्कायिक जीव को श्वास या निःश्वास में पृथ्वीका यिक-अपकायिकअग्निकायिक वायुकायिक-वनस्पतिकायिक जीवों को ग्रहण करते हुए कदाचित् तीन, कदाचित चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है।
इसी प्रकार अग्निकायिक जीव को श्वास या निःश्वास में पृथ्वीकायिक-अपकायिकअग्निकायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिक जीवों को ग्रहण करते हुए. कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है।
इसी प्रकार वायुका यिक जीव को श्वास या निःश्वास में पृथ्वीकायिक-अपकायिकअग्निकायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिक जीवों को ग्रहण करते हुए कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है ।
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