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क्रिया-कोश की अपेक्षा कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है। मनुष्य जीव के परकीय औदारिक शरीर की अपेक्षा कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच किया होती है ; कदाचित वह अक्रिय होता है (प्रथम दंडक )।
जीव ( एकवचन ) के औदारिक शरीरों ( बहुवचन ) की अपेक्षा कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित पाँच क्रिया होती है ; कदाचित् वह अक्रिय होता है। दंडक के जीव के संबंध में वैसे ही आलापक कहने चाहिए जैसे एकवचन औदारिक शरीर के सम्बन्ध में कहे गये है (द्वितीय दंडक )।
जीवों (बहुवचन) के परकीय औदारिक शरीर (एकवचन) की अपेक्षा कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित पाँच किया होती है, कदाचित् वे अक्रिय होते हैं । अवशेष आलापक प्रथम दंडक के अनुसार कहने चाहिए (तृतीय दण्डक)। . जीवों (बहुवचन ) के परकीय औदारिक शरीरों (बहुवचन ) की अपेक्षा कदाचित तीन, कदाचित चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है ; कदाचित् वे अक्रिय होते हैं । दण्उक के जीवों के सम्बन्ध में औदारिक शरीरों की अपेक्षा द्वितीय दंडक के अनुसार आलापक कहने चाहिए ( चतुर्थ दण्डक )।
विश्लेषण:--- यद्यपि मुल में परकीय शब्द नहीं है किन्तु टीकाकार ने मुल की भावना को समझकर परकीय शब्द का व्यवहार किया है, अतः हमने भी औदारिक शरीर के साथ उपयोग किया है।
६६.६ परकीय वैक्रिय शरीर की अपेक्षा जीव के कितनी क्रिया :--
जीवे णं भंते ! वेउब्वियसरीराओ कइ किरिए ! गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय अकिरिए। नेरइए णं भंते ! वे उब्वियसरीराओ कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए एवं -जाव--वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे। एवं जहा ओरालियसरीरेणं चत्तारि दंडगा तहा वेउब्वियसरीरेण वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा, नवरं पंचमकिरिया ण भण्णइ, सेसं तं चेव।
-भग• श ८ ! उ ६ । प्र २६,२७ । पृ० ५५३ जीव ( एकवचन ) के परकीय वैक्रिय शरीर (एकवचन) की अपेक्षा कदाचित तीन, कदाचित् चार क्रिया होती है ; कदाचित् वह अक्रिय होता है। नारकी के परकीय वैक्रिय शरीर की अपेक्षा कदाचित तीन, कदाचित चार क्रिया होती है । इसी प्रकार मनुष्य बाद असुरकुमार यावत् वैमानिक देव के परकीय वैक्रिय शरीर की अपेक्षा कदाचित् तीन,
"Aho Shrutgyanam"