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क्रिया-कोश
१५७ अक्रिय होता है—ऐसा पाठ कहना । अन्य दंडकों में अक्रिय
मनुष्य के सम्बन्ध में होता है ऐसा पाठ नहीं कहना ।
सर्व जीव औदारिक शरीर वाले जीव-जीवों के प्रति पाँच क्रिया तक करता है ; नारक नारकियों, देव-देवों के प्रति प्राणातिपातिकी पाँचवीं क्रिया का वर्णन नहीं करना ।
औधिक जौव तथा २४ दण्डक के जीव मोट २५ आलापक के सम्बन्ध में औधिक जीव तथा चौबीस दण्डक के जीव के प्रति कितनी क्रिया करता है - ऐसे पचीस-पचीस आलापक कहें । प्रत्येक आलापक में एकवचन बहुवचन को ग्रहण करके चार-चार दंडक कहें ।
-६६ ५ परकीय औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया :
जीवे णं भंते! ओरालियसरीराओ कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंच किरिए, सिय अकिरिए । नेरइए णं भंते! ओरालियेसरीराओ कर किरिए ? गोयमा ! सिय तिक्रिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए । असुरकुमारे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कइ किरिए ? एवं वेष, एवं जाव - मणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे ।
जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरेहिंतो कह किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए - जाब - सिय अकिरिए । नेरइए णं भंते ! ओरालियसरी रे हितो कइ किरिए ? एवं एसो जहा पढमो दंडगो तहा भाणियब्वो- जाव - वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे ।
जीवा णं भंते ! ओरालियसरीराओ कइ किरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया- जाव - सिय अकरिया ! नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीराओ कइ किरिया ? एवं एसोवि जहा पढमो दंडगो तहा भाणियन्वो- जाव- वैमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा ।
जीवाणं भंते! ओरालियसरीरेहिंतो कइ किरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चकिरिया वि, पंचकिरिया वि, अकिरिया वि । नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीरेहिंतो क३ किरिया ? तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि एवं - - जाव मणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा ।
- भग० श प उ ६ । प्र १७ से २५ । पृ० ५५३ जीव ( एकवचन) के परकीय औदारिक शरीर ( एकवचन) की अपेक्षा कदाचित तीन, कदाचित चार, कदाचित् पाँच क्रिया होती है; कदाचित् वह अक्रिय होता है । नारकी के परकीय औदारिक शरीर की अपेक्षा कदाचित तीन, कदाचित चार, कदाचित पाँच क्रिया होती है । इसी प्रकार मनुष्य बाद असुरकुमार यावत वैमानिक देव के परकीय औदारिक शरीर
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