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क्रिया - कोश
नारकी जीवों से लेकर वैमानिक जीवों तक दंडक के सभी जीवों के कायिको क्रियापंचक की पाँचों क्रियाएँ होती हैं ।
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६६ ३ जीव की अन्य जीव या जीवों के प्रति कायिकीपंचक- क्रियाएँ :
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(क) जीवे णं भंते ! जीवाओ कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चकिरिए, सिए पंचकरिए, सिय अकिरिए ।
जीवे णं भंते ! नेरइयाओ कइ किरिए १ मोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउ - किरिए, सिय अकिरिए, एवं जाव थणियकुमाराओ ।
पुढविकाश्याओ, आउषकाश्याओ. तेउक्काश्याओ, वाउक्काश्यवणस्स ( फ्फ ) - इकाइ बेदियतेईदियच उरिदियपंचिदिद्यतिरिक्खजोणियमणुस्साओ जहा जीवाओ ; वाणमंतर जोइसिय वैमाणियाओ जहा नेरश्याओ ।
जीवे णं भंते! जीवेहितो कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, लिय चउकिरिए, सिय पंच किरिए, सिय अकिरिए ।
जीवे णं भंते! नेरइएहिंतो कइ किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय अकिरिए, एवं जहेव पढमो दंडओ तहा एसो बिइओ भाणियव्वो । - पण ० प २२ । स् १५८८-६१ । पृ० ४५०
जीव अन्य जीव के प्रति कभी कायिकी आदि तीन, कभी चार, कभी पाँच क्रियाएँ करता है, कभी अक्रिय रहता है । जीव नारकी यावत् स्तनितकुमार के प्रति कभी तीन, कभी चार क्रियाएँ करता है, कभी अक्रिय रहता है। जीव पृथिवीकाय यावत् मनुष्य के प्रति कभी तीन, कभी चार, कभी पाँच क्रियाएँ करता है, कभी अक्रिय रहता है । जीव वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देव के प्रति कभी तीन, कभी चार क्रियाएँ करता है, कभी अक्रिय रहता है । जीव अन्य जीवों के प्रति, नारकियों के प्रति यावत् वैमानिक देवों के प्रति उसी प्रकार क्रियाएँ करता है, जैसा ऊपर के प्रथम दण्डक में कहा गया है ।
(ख) जीवा णं भंते! जीवाओ कइ किरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया वि सिय चउकिरिया वि, सिय पंच किरिया वि, सिय अकिरिया वि ।
जीवा णं भंते! नेरख्याओ कइ किरिया ? गोयमा ! जहेव आदिल्लदंडओ तहेव भाणियच्वो जात्र वेमाणियति ।
जीवा णं भंते! जीवेहितो कर किरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि. पंचकिरिया वि, अकिरिया वि ।
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