________________
क्रिया कोश ६६ कायिकी क्रियापंचक ६६.१ कायिकी क्रियापंचक की क्रियाओं के नाम---
(क) कइ णं भंते ! किरियाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा! पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा --काइया, अहिंगरणिया, पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया।
- पण्ण' प २२ । सू १५६७ । पृ० ४७८
पण्ण० प २२ । सू. १६०५ । पृ० ४८१ --सम० सम ५। सू ५ । उत्तर केवल । पृ० ३१६ -ठाणस्था ५ ! उ २ ! सू ४१६ ! उत्तर केवल । पृ० २६२
--भग० श८। उ ४ । प्र १ । पृ० ५४८
-भग० श ३ । उ ३ प्र १ । पृ० ४५६ क्रिया पाँच प्रकार की कही गई है ; यथा--कायिकी, अधिकरणिकी, प्रादेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी।
(ख) कइ णं भंते ! आयोजियाओ किरियाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! पंच आयोजियाओ किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा-काइया जाव पाणाइवायकिरिया।
—पपण प २२ । सू१६१७ । पृ० ४८२ आयोजिका क्रिया पाँच प्रकार की होती है; यथा-- कायिकी, अधिकरणिकी, प्रादेषिकी, मारितापनिकी और प्राणातिपातिकी आयोजिका क्रिया। टीका-आयोजयंति जीवं संसारे इत्यायोजिकाः।
अर्थात् जो जीव को संसार से जोड़े वह आयोजिका (क्रिया)।
'६६२ दंडक के जीव और कायिकी क्रियापंचक
(क) नेरइया णं भंते ! कइ किरियाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा-काइया जाव पाणाश्वायकिरिया, एवं जाव वेमाणियाणं ।
-पण्ण० प २२ । सू १६०५ । पृ० ४८१ (ख) पंच किरियाओ पत्नत्ताओ, तं जहा-काइया, अहिगरणिया, पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया, नेरइयाणं पंच एवं चेव निरंतरं जाव वेमाणियाणं।
-ठाण० स्था ५ । उ २ । सू ४१६ । पृ० २६२ (ग) का णं भंते ! आयोजियाओ किरियाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! पंच आयोजियाओ किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–काइया जाव पाणाइवायकिरिया, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । --पण्ण० प २२ । सू १६१७-१८ । पृ० ४५२
२०
"Aho Shrutgyanam"