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________________ क्रिया-कोशे . टीका- धनेज्नुपनीते क्रयिकस्य महत्यस्ताः भवन्ति, धनस्य तदीयत्वात् । गृहपतेस्तु तास्तनुकाः, धनस्य तदानीम् अतदीयत्वात् । खरीदे हुए माल की कीमत का धन नहीं देने तक ग्राहक को धन को अपेक्षा अपनत्वभाव के कारण महती और बिक्रेता को अपनत्व भाव के अभाव में हलकी क्रिया होती है। (घ) गाहावइस्स णं भंते ! भंडे–जाव-धणे य से अणुवणीए सिया ? एयं पि जहा भंडे उवणीए तहा नेयव्वं चउत्थो आलावगो, धणे य से उवणीए सिया जहा पढमो आलावगो, भंडे य से अणुवणीए सिया तहा नेयवो पढम-चउत्थाणं एकको गमो, बिइय-तझ्याणं एक्को गमो । -भग० श ५ 1 उ६ प्र८। पृ० ४८१ माल के बेचवाल के पास से खरीददार ने माल खरीद लिया लेकिन माल की कीमत रूप धन नहीं चुकाया- उस स्थिति में उस खरीददार को कीमत रूप धन की अपेक्षा पाँचों क्रियाएँ ( अपेक्षाकृत भारी) होती हैं और बेचवाल को प्रतनु-हल्की होती हैं । टीका-धने उपनीते धनप्रत्ययत्वात् तासां गृहपतेर्महत्यः, क्रयिकस्य तु प्रतनुकाः धनस्य तदानीम् अतदीयत्वात् ।। बेचे हुए माल की कीमत का धन प्राप्त हो जाने के बाद धन की अपेक्षा बिक्रेता को महती तथा ग्राहक को अपनत्व हट जाने से हलको क्रिया होती है । '६५.१२ आरम्भिकी क्रियापंचक और अल्प-बहुत्व : --- एयासि " भंते ! आरंभियाण जाव मिच्छादसणवत्तियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा ४? गोयमा! सव्वत्थोवाओ मिच्छादसणवत्तियाओ किरियाओ, अपञ्चक्खाणकिरियाओ विसेसाहियाओ, परिग्महियाओ विससेसाहियाओ, आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, मायावत्तियाओ विसेसाहियाओ। -पण्ण० प २२ । सू १६४० । पृ० ४८६ सबसे कम मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया वाले जीव होते हैं, उनसे अप्रत्याख्यान क्रिया वाले जीव विशेषाधिक हैं, उनसे पारियहिकी क्रिया वाले जीव विशेषाधिक हैं, उनसे आरंभिकी क्रिया वाले जीव विशेषाधिक हैं तथा उनसे मायाप्रत्ययिकी क्रिया वाले जीव विशेषाधिक है। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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