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क्रिया-कोश कजइ--जाव-मिच्छादंसणकिरिया कजइ, कइयस्स का ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कन्ज–जाव-मिच्छादसणकिरिया कज्जइ ? गोयमा ! गाहावइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कज्जइ-जाव--अपञ्चक्खाणकिरिया ( कज्जइ), मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ ; कइयस्स गं ताओ सव्वाओ पयणुई भवति ।
-भग० श ५। उ ६ । प्र६ । पृ० ४८० __ माल बेचते हुए व्यापारी का माल यदि कोई खरीददार खरीद ले और सौदा पक्का करने के लिए बयाना दे दे किन्तु माल न ले जाय अर्थात माल बेचवाल के पास ही पड़ा रहे तो ऐसी स्थिति में बेचवाल को आरंभिकी यावत् अप्रत्याख्यान चारों क्रियाएँ होती हैं। मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित होती है ; कदाचित नहीं होती है। माल के खरीददार को भी उस स्थिति में ये सब क्रियायें प्रतनु-हल्की होती हैं।
टोका क्रयिको ग्राहको भाण्डं स्वादयेत् सत्यकारदानतः स्वीकुर्यात् ।
अप्राप्तभाण्डत्वेन तद्गतक्रियाणाम् अल्पत्वाद् इति, गृहपतेस्तु महत्यःभाण्डस्य तदीयत्वात् । क्रयिकस्य भाण्डे समर्पिते महत्यस्ताः गृहपतेस्तु प्रतनुकाः ।
खरीददार--ग्राहक बयाना देकर माल को स्वीकार कर लेता है अतः माल नहीं उठाने पर भी माल की अपेक्षा ग्राहक को क्रिया होती है लेकिन अल्प होती है तथा बिक्रेता को तदात्मभाव-अपनत्व होने से महतो क्रिया होती है । ग्राहक को माल समर्पित कर देने के पश्चात माल की अपेक्षा ग्राहक को महती तथा बिक्रेता को हलकी क्रिया होती है।
(ग)गाहावइस्स गं भंते ! भंडं विकिणमाणस्स-जाव-भंडे से उवणीए सिया, कश्यास गं भंते ! ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कजइ---जाव–मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कजइ ; गाहावइस्स वा ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ-जाव-मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजइ ? गोयमा! कश्यस्स ताओ भंडाओ हेडिल्लाओ चत्तारि किरियाओ कन्जंति, मिच्छादसणवत्तिया किरिया भयणाए ; गाहावइस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुई भवंति।
-~-भग० श ५ । उ ६ । प्र ७ । पृ० ४८०-८१ कोई खरीददार यदि बेचवाल के यहाँ से माल उठाकर अपने यहाँ ले आवे तो ऐसी स्थिति में उस खरीददार को आरंभिकी यावत् अप्रत्याख्यान चारों क्रियाएँ ( अपेक्षा कृत भारी) होती है तथा मिथ्यादर्शनपत्ययिकी क्रिया की भजना होती है और खरीददार के माल उठाकर ले जाने के बाद भी बेचवाल को मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया की भजना के साथ ये सब क्रियायें प्रतनु-हल्की होती हैं।
"Aho Shrutgyanam"