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क्रिया-कोश
१४१ तेसि यतिआओ ( तेसि णं नियताओ) पंच किरियाओ कजति, तं जहा.. आरंभिया. परिम्गहिया, मायावत्तिया, अपश्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया, से ते तेण?णं गोयमा ! एवं वुञ्चइ- नेरइया नो सव्वे समकिरिया।
- पण्ण ० प १७ । उ १ । सू ११२६ । पृ० ४३५ (ख) नेरक्या णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! नो इण? सम? । से केण?णं ? गोयमा ! नेरझ्या तिविहा पन्नत्ता, तं जहा--सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी, तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ पन्नत्ता, तं जहा–आरंभिया, परिम्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणकिरिया । तत्थ णं जे ते मिच्छदिट्ठी तेसि णं पंच किरियाओ कन्जंति, तंजहा- आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया। एवं सम्मामिच्छादिट्ठीणं पि । से तेण?णं गोयमा !
-भग० श १ । उ २। प्र ७६-८० । पृ० ३६१-६६२
नारकी जीव सब समक्रिया वाले नहीं होते हैं क्योंकि नारको जीव तीन प्रकार के होते हैं यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि तथा सम्यगमिथ्याष्टि। सम्यग्दृष्टि नारकी को आरंभिकी-पारिग्रहिकी-मायाप्रत्ययिकी-अप्रत्याख्यान- चार क्रियायें होती हैं ; तथा मिथ्याष्टि-सम्यग मिथ्याष्टि नारकी को आरंभिकी आदि पाँच क्रियाएँ नियम से होती हैं ! अतः कहा जाता है कि सब नारकी आरंभिकी क्रियापंचक की अपेक्षा समान क्रिया वाले नहीं हैं।
६५.७२ असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देवों में :--
(क) असुरकुमारा णं भंते ! xxx अवसेसं (समकिरिया-समाउया) जहा नेरइयाणं । एवं जाव थणियकुमारा।
-पण्ण० प १७ । उ १ . सू १४३२-३५-३६ । पृ० ४३५-३६ (ख) असुरकुमारा णं भंते ! xxx जहा नेरच्या तहा भाणियब्वा xxx सेसं ( समकिरिया-समाउया ) तहेव, एवं जाव थणियकुमाराणं ।
---- भग० श १ । उ २ । प्र८३ | पृ० ३६२ नारकी की तरह असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देव भी आरम्भिकी क्रियापंचक की अपेक्षा समक्रियावाले नहीं होते हैं। जो सम्यग्दृष्टि होते हैं उनके मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी बाद चार क्रियाएँ होती हैं । जो मिथ्या दृष्टि तथा सम्यगमिथ्यादृष्टि होते हैं उनके आरभिकी आदि पाँच क्रियाएँ होती हैं ।
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