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क्रिया-कोश ६५.७ ३ पृथ्वीकायिक यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों में :
(क) पुढविक्काइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? हंता, गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे समकिरिया। से केणढणं ? गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे माइमिच्छादिट्ठी तेसिं णियझ्याओ पंच किरियाओ कअंति, तं जहा--आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया ( य, से तेण?णं गोयमा !) एवं जाव चउरिदिया।
-पण्ण ० प १७ । उ.१ । सू ११३६-४० । पृ० ४३६ (ख) पुढविक्काइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? हंता ( गोयमा !) समकिरिया । से केण?णं ? गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे माई मिच्छादिट्ठी, ताणं णियइयाओ पंचकिरियाओ कज ति, तं जहा-आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया । xxx जहा पुढविक्काइया तहा जहा चउरिंदिया।
--भग० श १ । उ २ । प्र८७-८८ पृ० ३६२ पृथ्वी कायिक यावत चतुरिन्द्रिय जीव सब समान क्रियावाले होते है क्योंकि वे सब मायी-मिथ्यादृष्टि होते है। अतः आरम्भिकी क्रियापंचक की पाँची क्रियाएँ नियम से करते हैं ।
.६५.७.४ पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक जीवों में :--
(क) पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! नो इण? समठे। से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पन्नत्ता, तंजहा-सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी, तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा--असंजया य संजयासंजया य, तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसि णं तिन्नि किरियाओ कज ति, तं जहा - आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, असंजयाणं चत्तारि, मिच्छादिट्ठीणं पंच, सम्मामिच्छादिट्ठीणं पंच ।
-भग० श १ । उ २ । प्र६१-६२ । पृ० ३६२ (ख) पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरक्या नवरं किरियाहिं सम्मट्टिी, मिच्छहिट्ठी, सम्मामिच्छट्टिी। तत्थ णं जे ते सम्मट्टिी ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा - असंजया य संजयासंजया य । तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसि णं तिन्नि किरियाओ कज ति, तंजहा-आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया। तत्थ णं जे असंजया तेसि णं चत्तारि किरियाओ कन्जं ति, तंजहा---आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणकिरिया। तत्थ णं जे ते मिच्छट्ठिी जे य सम्मामिच्छट्ठिी तेसि गं णियइयाओ पंच किरियाओ कज ति, तंजहा----आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया । सेसं तं चेव ।
----पण्ण० प १७ । ३१ । सू ११४१ । पृ० ४३६
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