________________
क्रिया-कोश
१३६ पारिग्रहिकी क्रिया संयतासंयति-देशविरति को भी होती है क्योंकि वह परिग्रह धारण करता है।
मायाप्रत्यायिकी क्रिया अप्रमत्तसंयत को भी होती है क्योंकि प्रवचन की हेलना जिससे न हो उसके लिए कोई बात प्रच्छन्न करे-----लुकावे या प्रवचन की मलिनता की रक्षा करने के लिए किसी बात को छिपावे।
अप्रत्याख्यान क्रिया कोई भी अप्रत्याख्यान-अविरति को होती है। जो किंचित मात्र भी प्रत्याख्यान नहीं करता है उसको अप्रत्याख्यान क्रिया होती है ।
मिथ्यादर्शनक्रिया--जो जीव सूत्र में कथित एक भी अक्षर की श्रद्धा नहीं करता है उस मिथ्या ष्टि को होती है ।
'६५'६ आरम्भिकी क्रियापंचक तथा प्राणातिपातादि विरमण :
पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ, जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजइ? गोयमा ! पाणाइवायविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कन्जइ सिय नो कजइ । पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! णो इण? समठे। पाणाइयायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! सिय कन्जइ, सिय नो कज्जइ । पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स अपञ्चक्खाणवत्तिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! नो नो इण? सम? । मिच्छादसणवत्तियाए पुच्छा। गोयमा! नो इणढे सम? । एवं पाणाइवायविरयस्स मणूसस्स वि, एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य। मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादंसगवत्तिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! मिच्छदसणसल्लविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ, एवं जाव अपञ्चक्खाणकिरिया । मिच्छादंसणवत्तिया किरिया न कज्जइ । मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! नेरइयस्स कि आरंभिया किरिया कन्जइ जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! आरंभिया वि किरिया कज्जइ जाव अपञ्चक्खाणकिरिया वि कज्जइ, मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कज्जइ ! एवं जाव थणियकुमारस्स। मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा । गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मायावत्तिया किरिया कज्जइ, अपश्चक्खाणकिरिया सिय काजइ, सिय नो कज्जइ, मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कज्जइ। मणूसस्स जहा जीवस्स । वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरच्यस्स ।
-पण्ण० प २२ । सू १६५० से १६६२ । पृ० ४८५-८६
"Aho Shrutgyanam"