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________________ १३८ क्रिया-कोश गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपमत्तसंजयस्स । अपञ्चक्वाणकिरिया गं भंते ! कस्स कजइ ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपञ्चक्खाणिस्स । मिच्छादसणवत्तिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जड गोयमा ! अण्णयरस्सावि मिच्छादंसणिस्स। –पण ० प २२ । सू १६२२ से १६२६ । पृ ४८२ आर'भिकी क्रिया कोई एक प्रमत्तसंयत तथा उसके अधस्तन (नीचे वाले) गुणस्थानवर्ती जीवों के होती है। पारिग्रहिकी क्रिया कोई एक संयतासंयत तथा उसके नीचे वाले गुणस्थानवी जोवों के होती है। मायाप्रत्ययिकी क्रिया कोई एक अप्रमत्तसंयत तथा उसके नीचे वाले गुणस्थानवी जीवों के होती है। अप्रत्याख्यानक्रिया अविर ति तथा उसके नीचे वाले गुणस्थानवी जीवों के होती है। मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया मिथ्यादृष्टि के होती है। टीका :-एतासां क्रियाणां मध्ये यस्य या सम्भवति तस्य तां निरूपयति'आरंभिया णं भंते !' अन्नयरस्सवि पमत्तसंजयस्स इति अत्रापिशब्दो भिन्नक्रमः प्रमत्तसंयतस्याप्यन्यतरस्य-एकतरस्य कस्यचित् प्रमादे सति कायदुष्प्रयोगभावतः पृथिव्यादेरुपमईसम्भवात्, अपिशब्दोऽन्येषामधस्तनगुणस्थानवतिनां नियमप्रदर्शनार्थः, प्रमत्तसंयतस्याप्यारम्भिकी क्रिया भवति किं पुनः शेषाणां देशविरतप्रभृतीनामिति ?, एवमुत्तरत्रापि यथायोगमपि शब्दभावना कर्तव्या, पारिग्रहिकी संयतासंयतस्यापि देशविरतस्यापीत्यर्थः, तस्यापि परिग्रहधारणात, मायाप्रत्यया अप्रमत्तसंयतस्यापि, कथमिति चेत्, उच्यते, प्रवचनोड्डाहप्रच्छादनार्थ वल्लीकरणसमुद्देशादिषु, अप्रत्याख्यानक्रिया अन्यतरस्याप्यप्रत्याख्यानिनः, अन्यतरदपि न किञ्चिदपीत्यर्थः यो न प्रत्याख्याति तस्येति भावः, मिथ्यादर्शनक्रिया अन्यतरस्यापि सूत्रोक्तमेकमप्यक्षरमरोचयमानस्येत्यर्थः मिथ्यादृष्टभवति । रंभिकी क्रियाएँ किन-किन जीवों को होती है इसका विवेचन किया गया है : आरंभिकी क्रिया कोई एक प्रमत्तसंयत को होती है-यहाँ 'अपि' शब्द भिन्नक्रम को जनाता है । अन्यतर अर्थात् कोई एक प्रमत्तसंयत के प्रमाद के सद्भाव में शरीर के दुष्प्रयोग–अयतना से पृथ्वी आदि जीवों की हिंसा संभव है । 'अपि' शब्द उससे नीचे वाले गुणस्थानवी जीवों के आरंभिकी किया के होने की नियतता का द्योतक है। जब प्रमत्तसंयत को भी आरंभिकी क्रिया होती है फिर देशविरति आदि गुणस्थानवती जीवों के विषय में क्या कहना है अर्थात उनको नियमपूर्वक होती है । इस प्रकार बाद के सूत्रों के विषय में 'अपि' शब्द के अर्थ का विचार कर लेना चाहिए। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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