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________________ क्रिया-कोश १३७ (ख) पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया, नेरइयाणं पंच किरिया, निरंतर जाव वेमाणियाणं । -ठाण० स्था ५ । उ २। सू ४१६ । पृ० २६२ नारको जीवों के पाँचों क्रियाएँ होती है, यथा--आरम्भिको यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी। इस प्रकार दण्डक के यावत वैमानिक तक सभी जीवों के पाँचों क्रियाएँ होती हैं। ६५.३ आरम्भिकी क्रियापंचक और मिथ्यादृष्टि जीव :--- मिच्छदिट्ठियाणं नेरइयाणं पंच किरियाओ पन्नत्ताओ,तंजहा--आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया । एवं सब्वेसि निरंतरं जाव मिच्छद्दिटियाणं वेमाणियाणं । नवरं विकलिंदिया मिच्छद्दिट्टी न भन्नति सेसं तहेव ! __-ठाणा० स्था ५ । उ २ । सू ४१६ ! पृ० २६२ मिथ्याष्टि नारकी जीवों के आरम्भिकी कियापंचक की पाँचों क्रियाएँ होती हैं । इसी प्रकार यावत् मिथ्याष्टि वैमानिक जीवों तक के दंडक के सभी मिथ्यादृष्टि जीवों के आरंभिको कियापंचक की पाँचों क्रियाएँ होती है। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय के मिथ्याटष्टि विशेषण प्रयुक्त करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मिथ्यादृष्टि ही होते हैं। '६५.४ आरम्भिकी क्रियापंचक और समष्टि जीव : सम्मदिट्ठियाणं नेरझ्याणं चत्तारि किरियाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणकिरिया; सम्मदिट्ठियाणं असुरकुमाराणं चत्तारि किरियाओ पन्नत्ताओ एवं चेव । एवं विगलिंदियवज्जं जाव-वेमाणियाणं । -ठाण० स्था ४ । उ ४ । सू ३६६ । पृ० २५४ समदृष्टि नारकी जीवों के आरम्भिकी क्रियापंचक की प्रथम की चार क्रियाएँ होती है ! इसी प्रकार समदृष्टि असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देवों को भी चार क्रियाएँ होती हैं । समष्टि पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक जीव-मनुष्य-जीव-वाणव्यतर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों के भी इसी प्रकार चार क्रियाएँ होती हैं। . '६५५ आरंभिकी क्रियापंचक और गुणस्थान : आरंभिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जइ ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि (स्स वि) पमत्तसंजयस्स । परिग्गहिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जइ ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि संजयासंजयस्स ! मायावत्तिया णं भंते ! किरिया कास कजइ ? "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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