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क्रिया-कोश
जीव एजनक्रिया — कंपन सहित भी होते हैं, निष्कंप भी होते हैं । जो अनन्तर सिद्ध
होते हैं वे सकंप होते हैं जो परंपर सिद्ध होते हैं वे निष्कंप होते हैं । सिद्धत्व की प्राप्ति के प्रथम समय में सिद्ध अनंतर सिद्ध कहलाते हैं क्योंकि उनके एक समय का भी अंतर नहीं होता है अत. सिद्धत्व के प्रथम समय में जो वर्तमान सिद्ध जीव हैं उनमें कंपन होता है । सिद्धिगमनसमय तथा सिद्धत्व प्राप्ति का समय एक ही होने से तथा सिद्धगमन के समय में गमनक्रिया होने से अनंतरसिद्ध सकंप होते हैं । और वे अनंतर सिद्ध देशतः सकँप नहीं होते हैं, सर्वतः सकंप होते हैं । सिद्धत्व प्राप्ति होने के बाद जिनके समयादि का अन्तर पड़ता है वे परंपरसिद्ध कहलाते हैं और वे निष्कम्प होते हैं ।
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*६४ क्रियाद्वयक
'६४१ सम्यक्त्व - मिध्यात्व क्रियाद्वयक
*६४'१'१ सम्यक्त्व और मिथ्यात्व - दोनों क्रियाएँ एक जीव के एक समय में नहीं होत :
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(क) अण्णउत्थिया णं भंते! एवमाइक्वंति एवं भार्सेति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति - एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ, तंजहा - सम्मत्तकिरयं च मिच्छत किरियं च जं समयं सम्मत्त किरियं पकरे, तं समयं मिच्छन्तकिरियं पकरेश, जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरे, तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ, सम्मत्त किरियापकरणयाए मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, मिच्छत्तकिरियापकरणयाए सम्मत्तिकिरियं पकरेश एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेश, तंजहा - सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्त किरियं च । से कहमेर्य भंते ! एवं ? गोयमा ! जन्नं ते अन्न उत्थिया एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति - एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ, तहेव जाव सम्मत्तकिरियं चमिच्छत्तकिरियं च जे ते एवमाहंसु तं णं मिच्छा, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि - एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एवं किरियं पकरेश, तंजहा -- सम्मत्त किरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा, जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ णो तं समयं मिच्छत्त किरियं पकरेइ, तं चैव जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेह नो तं समयं सम्मत्तरियं पकरेs, सम्मत्त किरियापकरणयाए नो मिच्छत्त किरियं पकरेइ, मिच्छत्तकिरियापकरणयाए णो सम्मत्त किरियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एवं . किरियं पकरेइ, तंजहा सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा ।
-जीवा० प्रति ३ । तिरि उ २ । सू १४ । पृ० १५१-१५२
"Aho Shrutgyanam"