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क्रिया-कोश करेगा। इसी प्रकार आहारिकशरीर चलना, तेजसशरीर चलना तथा कार्मणशरीर. चलना के विषय में समझ लेना चाहिए ।
इन्द्रिय चलना पाँच प्रकार की होती है, यथा-१ श्रोत्रेन्द्रियचलना, २ चक्षुरि. न्द्रियचलना, ३ घाणेन्द्रिय चलना, ४ रसेन्द्रियचलना तथा ५ स्पर्शेन्द्रिय चलना ।
श्रोत्रेन्द्रियचलना अर्थात् श्रोत्रेन्द्रिय में वर्तमान जीव श्रोनेन्द्रिय के योग्य प्रायोगिक द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय रूप में परिणमन करता हुआ चलना करता था, करता है, करेगा। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रियचलना, घ्राणेन्द्रियचलना, रसेन्द्रियचलना तथा स्पर्शेन्द्रियचलना के विषय में समझ लेना चहिए।
योगचलना तीन प्रकार की होती है, यथा --- मनोयोगचलना, वचनयोगचलना तथा काययोगचलना।
मनोयोग अर्थात मनोयोग में वर्तमान जीव मनोयोग के योग्य प्रायोगिक द्रव्यों को मनोयोगरूप में परिणमन करता हुआ चलना करता था, करता है, करेगा। इसी प्रकार वचनयोगचलना तथा काययोगचलना के विषय में समझ लेना चाहिए।
६३.७ एजन क्रिया और जीव
जीवा णं भंते ! कि सेया, णिरेया ? गोयमा ! जीवा सेया वि, निरेया वि । से केण?णं भंते ! एवं वुझ्चइ–'जीवा सेया वि निरेया वि' ? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा--संसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य, तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-अणंतरसिद्धा य परंपरसिद्धा य, तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं निरेया, तत्थ पां जे ते अणंतरसिद्धा ते णं सेया, ते णं भंते! किं देसेया, सव्वेया? गोयमाणो देसेया, सव्वेया। तत्थाजे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सेलेसिपडिवन्नगा य असेलेसिपडिवन्नगा य । तत्थ णं जे ते सेलेसीपडिवन्नगा ते णं निरेया, तत्थ णं जे ते असेलेसीपडिवन्नगा ते णं सेया, ते णं भंते ! कि देसेया, सव्वेया ? गोयमा ! देसेया वि, सव्वेया वि, से तेण?णं जाव निरेया वि। नेरइया भंते ! किं देसेया, सव्वेया ? गोयमा ! देसेयावि, सव्वेया वि, से केण?णं जाव--सब्वेया वि ? गोयमा ! नेरक्या दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-विश्गहराइसमावन्नगा य अविग्गहगइसमावन्नगा य । तत्थ णं जे ते विग्गहगइसमावन्नगा ते णं सव्वेया, तत्थ णं जे ते अविग्गहगइसमावन्नगा ते णं देसेया, से तेण?णं जाव- सव्वेया वि, एवं जाव वेमाणिया ।
--भग० श २५.! उ ४ । प्र० ३५ से ३७ । पृ० ८६३-६४
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"Aho Shrutgyanam"