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क्रिया - कोशं
'चलणा, कायजोगचलणा । से केणट्टणं भंते! एवं वुश्चइ-ओरालिय सरीरचलणा ओरालियसरीरचलणा ? गोयमा ! जं णं जीवा ओरालियसरीरे वट्टमाणा ओरालिय सरीरपाओम्गाई दव्वाई ओरालियसरीरत्ताए परिणामेमाणा ओरालियसरीरचलणं चलिंसु वा, चलति वा, चलित्संति वा से तेणट्टेणं जाव ओरालियसरीर
चलणा २ ।
भंते! एवं वुश्च३ - वेडव्वियसरी चलणा वेडव्वियसरीरचलणा ? एवं वेव, नवरं - वेडव्वियसरीरे वट्टमाणा, एवं जाव कम्मगसरीरचलणा ।
सेकेट्टे भंते! एवं वुश्चइ – 'सोइ दियचलणा सोइ दियचलणा ? गोयमा ! जं णं जीवा सोइ दिये वट्टमाणा सोइंदियपाओग्गाई' दव्वाइ सोइ दियत्ताए परिणामेमाणा सोइ दियचलणा चलिंसु वा, चलति वा, चलिस्संति वा, से तेणटुणं जाव सोइ दियचलणा २ । एवं जाव फासिंदियचलणा ।
सेकेट्टे भंते! एवं वुञ्चइ-मणजोगचलणा मणजोगचलणा ? गोयमा ! जं णं जीवा मणजोए वट्टमाणा मणजोगपाओग्गाई दव्वाई मणजोगत्ताए परिणामेमाणा मणजोगचलणं चलिसु वा, चलति वा, चलित्संति वा से तेणणं जाव-मणजोगचलणा २ एवं वइजोगचलणा वि, एवं कायजोगचलणा वि ।
- भग० श १७ । ३ । प्र ८ से १५ । पृ० ७५७-७५८ टीका – 'कई' त्यादि, 'चलण' त्ति एजना एव स्फुटतरस्वभावा 'सरीरचलण' त्ति शरीरस्य -- औदारिका देश्चलना - तत्प्रायोग्यपुद्गलानां तद्रूपतया परिणमने व्यापारः शरीरचलना, एवमिन्द्रिययोगचलने अपि, 'ओरालिय सरीरचलणं चलिस' त्ति औदारिकशरीरचलनां कृतवन्तः ।
चलना-क्रिया एजना से स्फुटतर स्वभाव वाली होती है अर्थात् चलना का परिस्पंदन एजना के परिस्पंदन से स्पष्टतर- स्थूलतर होता है ।
चलना तीन प्रकार की होती है, यथा - १ शरीरचलना, २ इन्द्रियचलना तथा ३ योगचलना ।
शरीर चलना पाँच प्रकार की होती है, यथा-१ औदारिकशरीरचलना, २ वैक्रियशरीरचलना, ३ आहारिकशरीरचलना, ४ तैजसशरीरचलना तथा ५ कार्मणशरीरचलना ।
औदारिक शरीर चलना अर्थात् औदारिक शरीर में वर्तमान जीव औदारिक शरीर के योग्य प्रायोगिक द्रव्यों को औदारिक शरीर रूप में परिणमन करता हुआ चलना करता था, करता है, करेगा | इसी प्रकार वैक्रियशरीर में वर्तमान जीव वैकिय शरीर के योग्य प्रायोगिक द्रव्यों को वैक्रिय शरीर रूप में परिणमन करता हुआ चलना करता था, करता है,
"Aho Shrutgyanam"