________________
क्रिया-कोश
*६३'५ शैलेशी जीव एजनादि क्रिया नहीं करता है
सेलेसि पडिवन्नाए णं भंते ! अणगारे सया समियं एयइ, वेयइ, जाव-- तं तं भावं परिणमइ ? णो इण्ठ्ठे समट्ठ, गण्णत्थ एगेण परप्पओगेणं । - भग० श १७ । उ ३ । प्र १ । पृ० ७५७ शैलेशी अवस्था को प्राप्त जीव एजनादि किया नहीं करता लेकिन परप्रयोग से स्यात् एजनादि किया हो सकती है अर्थात् शैलेशी अवस्था में आत्मा अत्यन्त स्थिरता को प्राप्त होने से परप्रयोग के अतिरिक्त नहीं कम्पता है ।
शैलेशत्व को प्राप्त संसारी जीव निष्कंप होते हैं । अशैलेशी संसारी जीव सकंप होते हैं तथा वे देशतः भी सकंप होते हैं तथा सर्वतः भी सकंप होते हैं। यथा-ईलिका गति से उत्पत्ति स्थान को जाते हुए जीव देशतः सकंप होते हैं क्योंकि उनके पूर्व के शरीर में रहा हुआ अंश गतिक्रिया रहित होने के कारण निष्कंप होता है । नारकी जीव देशतः भी सकम्प होते हैं, सर्वतः भी सकंप होते हैं—जो नारकी जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं वे सर्वतः सकंप होते हैं तथा जो नारकी जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते हैं वे देशतः सकंप होते हैं ।
इसी प्रकार दंडक के सभी जीवों के सम्बन्ध में यावत वैमानिक जीवों तक जानना |
*६३६ चलना क्रिया
६३.६१ परिभाषा / अर्थ
'चलण' प्ति एजना एव स्फुटतरस्वभावा ।
- भग० श १७ । उ ३ । प्र ८ | ठीका
१२७
चलना-क्रिया एजना से स्फुटतर स्वभाव वाली होती है--चलना का कंपन—परिस्पंदन चलना-क्रिया के परिस्पंदन के भेदों के
एजना के कंपन—परिस्पंदन से स्फुटतर होता है । अनुसार मूलतः तीन भेद किये जाते हैं । परन्तु उपभेद अनेक हो सकते हैं ।
६३*६*२,३ भेद / भेदों की परिभाषा -
विहाणं भंते ! चलणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा चलणा पण्णत्ता, तंजहा -- सरीरचलणा, इंदियचलणा, जोगचलणा । सरीरचलणा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा ओरालियसरीरचलणा जाव कम्मगसरीरचलणा । इं दियचलणा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा- सोइ दियचलणा जाव फासिंदियचलणा | जोगचलणा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तंजहा- मणजोगचलणा, वइजोग
"Aho Shrutgyanam"