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________________ १२२ क्रिया - कोश - ६२ मिथ्यादर्शनशल्य (पापस्थान) क्रिया *६२१ परिभाषा / अर्थ :― (क) मिथ्यादर्शनं - विपर्यस्ता दृष्टिः, तदेव तोमरादिशल्यमित्र शल्यं दुःखहेतुत्वात् मिथ्यादर्शनशल्यमिति । - ठाण० स्था १ । सू ४८ । टीका (ख) 'मिच्छादंसणसल्लेणं' ति मिथ्यादर्शनं मिध्यात्वं तदेव शल्यं मिथ्यादर्शन----पण० प २२ | सू ३ । टीका शल्यम् । यथातथ्य वस्तु तत्त्व से विपरीत दृष्टि-- मिथ्यादर्शन है । शल्य अर्थात् कांटा; मिथ्यादर्शन रूप शल्य मिथ्यादर्शनशल्य । मिथ्यादर्शन शल्य के समान, अत्यन्त दुःखदायी होता है --- जिस प्रकार किसी अंग में शल्य- कांटा चुभ जाने से घनी वेदना होती है उसी प्रकार शल्य रूप मिथ्यादर्शन आत्मा के महान् कष्ट का कारण होता है । मिथ्यादर्शन के भेदों के अनुसार मिथ्यादर्शनशल्य के भी पाँच या अनेक भेद हो सकते हैं । • ६२.२ मिथ्यादर्शनशल्यक्रिया और जीवदंडक : - (क) अस्थि णं भंते ! जीवा णं परिग्गणं किरिया कजइ ? हंता, अस्थि । कम्हि णं भंते ! जीवा णं परिग्गहेणं किरिया कज्जइ ? गोयमा । सव्वदव्वेसु, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । एवं xxx मिच्छादंसणसल्लेणं । सव्वेसु जीवनेरइयभेदेसु (भेदेणं) भाणियव्वं (भाणियव्वा ) निरंतरं जाव वेमाणियाणं ति । - पण ० प २२ । सू १५८० | पृ० ४७६ जीवादि द्रव्यों या तत्वों के विषय में मिथ्या - विपरीत - गलत दृष्टिरूप शल्य होना — मिथ्यादर्शनशल्य है । यथातथ्य वस्तुतत्त्व से विपरीत दृष्टि जीव के आत्मप्रदेशों में शल्य की भाँति चुभती है । मिथ्यादर्शनशल्य दर्शनमोहनीयकर्म के उदय या उदीरणा से उत्पन्न होता है । मिथ्यादर्शनशल्यक्रिया सभी द्रव्यों-तत्त्वों के विषय में जीव करते हैं । नारकी से लेकर वैमानिक देव तक के जीव सभी द्रव्यों-तत्त्वों के विषय में मिथ्यादर्शनशल्य से क्रिया करते हैं । (ख) अस्थि णं भंते ! जीवा णं पाणाश्वाएणं किरिया कज्जइ ? हंता, अत्थि | xxx । एगिंदिया जहा जीवा तहा भाणियव्वा, जहा पाणाइवाए तहा xxx कोहे जाव मिच्छादंसण सल्ले । (देखो २२४) --भग० श १ । उ६ । प्र २१५ | पृ० ४०३ जीव मिथ्यादर्शनशल्य से क्रिया करते हैं। मिथ्यादर्शनशल्यक्रिया यदि व्याघात नहीं हो तो छओं दिशाओं को और व्याघात होने से कदाचित तीन दिशाओं को, कदाचित् चार दिशाओं को, कदाचित पाँच दिशाओं को स्पर्श करती है । मिथ्यादर्शनशल्य क्रिया "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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