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________________ क्रिया - कोश उत्पन्न होते हैं । परपरिवाद - क्रिया जीव-अजीव सभी द्रव्यों के नारकी से लेकर वैमानिक देव तक के जीव सभी द्रव्यों के विषय ११८ के उदय या उदीरणा से विषय में जीव करते हैं. 1 में परपरिवाद क्रिया करते हैं । (ख) अत्थि णं भंते ! जीवा णं पाणाश्वाएणं किरिया कज्जइ ? हंता, अत्थि । xxx | एगिंदिया जहा जीवा तहा भाणियव्वा, जहा पाणाश्वाए तहा xxx कोहे जाव मिच्छादंसणसल्ले । ( देखो २२४ ) -भग० श १ । उ ६ । प्र २१५ । पृ० ४०३ जीव पर परिवाद से क्रिया करते हैं । परपरिवाद - क्रिया यदि व्याघात नहीं हो तो छओं दिशाओं को और व्याघात होने से कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित चार दिशाओं को, कदाचित पाँच दिशाओं को स्पर्श करती है। परपरिवाद क्रिया आत्मकृत है, परकृत या उभयकृत नहीं है । यह क्रिया अनुक्रमपूर्वक की जाती है, बिना अनुक्रमपूर्वक नहीं की जाती है । • नारकी जीव भी परपरिवाद क्रिया सब द्रव्यों के विषय में करते हैं तथा यह क्रिया यावत नियमपूर्वक छओं दिशाओं को स्पर्श करती है तथा औधिक जीव की तरह यावत अनुक्रमपूर्वक की जाती है । एकेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिक देव तक सब दंडकों में नारकी के समान कहना चाहिए । एकेन्द्रियों का कथन औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए । *५६·३ पर-परिवादक्रिया और कर्मप्रकृति का बंध : जीवे णं भंते! पाणांश्वाएणं कर कम्मपगडीओ बंधइ ?........( पूरे पाठ के लिये देखो '२२*५) (एवं) जाव मिच्छादंसणसल्ले । - पण्ण० प २२ । सू १५८४४७६८० पर-परिवाद किया करता हुआ जीव उसी प्रकार कर्मप्रकृति का बंध करता है जैसा प्राणातिपात किया करता हुआ जीव कर्म प्रकृति का बंध करता है । ६० रति- अरति पापस्थानक्रिया ६०१ परिभाषा / अर्थ (क) अरतिश्च तन्मोहनीयोदयजश्चित्तविकार उद् गलक्षणो रतिश्च तथाविधानन्दरूपा अरतिरति इत्येकमेव विवक्षितं यतः क्वचन विषये या रतिस्ताभव "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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