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क्रिया-कोश नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । एवं कोहेणं xxx| सव्वेसु जीवनेरइयभेदेसु ( भेदेणं) भाणियव्वं ( भाणियव्वा ) निरंतरं जाव वेमाणियाणं ति xxx !
--पण्ण० प २२ । सू १५७६-८० । पृ० ४७६ किसी जीव या अजीव वस्तु के प्रति उग्र या रोष भाव लाना क्रोध है । ये भाव कषाय मोहनीय कर्म के उदय या उदीरणा से उत्पन्न होते हैं । क्रोधक्रिया अजीव तथा जीव सभी द्रव्यों के प्रति जीव करता है। नारकी से लेकर वैमानिक देव तक के जीव सभी द्रव्यों के प्रति क्रोध से क्रिया करते हैं।
(ख) अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ ? हंता, अस्थि । सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ, अपुट्ठा कजइ ? जाव निव्वाधाएणं छदिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि, सिय चउदिसि, सिय पंचदिसिं । सा भंते ! किं कडा कज्जइ, अकडा कजइ ? गोयमा ! कडा कजइ, नो अकडा कज्जइ । सा भंते ! किं अत्तकडा कज्जइ, परकडा कजइ, तदुभयकडा कजइ १ गोयमा ! अत्तकडा कन्जइ, नो परकडा कज्जइ, नो तदुभयकड़ा कज्जइ । सा भंते ! किं आणुपुव्वि कडा कज्जइ, अणाणुपुर्दिव कडा कन्जइ ? गोयमा ! आणुपुवि कडा कज्जइ, णो अणाणुपुव्वि कडा कज्जइ, जा य कडा जा य कज्जइ जाय कज्जिसइ सव्वा सा आणुपुश्विकडा नो अणाणुपुब्धि कडत्ति वत्तव्वं सिया।
अत्थि णं भंते ! नेरझ्याणं पाणाइवायकिरिया कज्जइ ? हंता, अस्थि । सा भंते! किं पुट्ठा कजइ, अपुट्ठा कज्जइ ? जाव नियमा छहिसिं कज्जइ, सा भंते ! किं कडा कज्जइ अकडा कज्जइ ? तं चेव जाव नो अणाणुपुब्धि कडत्ति वत्तव्वं सिया।
जहा नेरइया तहा एगिदियवज्जा भाणियन्वा, जाव वेमाणिया, एगिदिया जहा जीवा तहा भाणियबा, जहा पाणाइवाए तहा xx कोहे जाव मिच्छादंसणसल्ले।
-भग० श १ । उ ६ । प्र२०६ से २१५ । पृ० ४०२-३ जीव क्रोध से क्रिया करते हैं। क्रोध-क्रिया यदि व्याघात नहीं हो तो छओं दिशाओं को और व्याघात होने से कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित चार दिशाओं को, कदाचित् पाँच दिशाओं को स्पर्श करती है । क्रोध-क्रिया आत्मकृत है, परकृत या तदुभयकृत नहीं है। यह किया अनुक्रमपूर्वक की जाती है विना अनुकमपूर्वक नहीं की जाती है।
नारकी जीव भी क्रोध-क्रिया सब द्रव्यों के विषय में करते हैं तथा यह किया यावत् नियमपूर्वक छओं दिशाओं को स्पर्श करती है तथा औधिक जीव की तरह यावत् अनुक्रमपूर्वक की जाती है।
"Aho Shrutgyanam"