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________________ १०४ क्रिया-कोश लोहे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज ति आहिज्जइ । अट्टमे किरियट्ठाणे अज्झत्थवत्तिए त्ति आहिए। -सूय० श्रु २ । अ २ । सू ६ । पृ० १४७ टीका- आत्मन्यध्यध्यात्म, तत्र भव आध्यात्मिको दण्डस्तद्यथा--निनिमित्तमेव दुर्मना उपहतमनःसंकल्पो हृदयेन ह्रियमाणश्चिन्तासागरावगाढः सन्तिष्ठते । --सूय ० श्रु २ । अ २ । सू १ । टीका __यदि कोई व्यक्ति विषाद का कोई कारण न होने पर भी होन-दीन-दुष्ट और बुरे विचार करता रहता है ; अनवस्थित-अस्थिर संकल्प वाला होता है ; चिन्ता-शोकसागर में डूबता रहता है; हथेली में मुँह रखकर, आर्तध्यान में लीन होकर भूमि की ओर एकाग्रचित्त से देखता रहता है। उसकी आत्मा में क्रोध-मान-माया-लोभ के भाव स्वचित्त से उत्पन्न होते रहते हैं तथा इस प्रकार स्वतः उत्पन्न क्रोध-मान-माया-लोभ की भावना से विना निमित्त उसका अध्यात्म दुष्ट होता रहता है ऐसे अपने आपमें शोक मग्न व्यक्ति के अध्यात्मप्रत्ययिक सावधक्रिया लगती है। यह आठवाँ अध्यात्मप्रत्ययिक क्रियास्थान है । बुरे विचार उस व्यक्ति की आत्मा में स्वतः बिना किसी बाह्य निमित्त के उत्पन्न होते रहते हैं तथा उसकी आत्मा में ही रमण करते हैं इसलिए इनको अध्यात्म कहा है तथा इनके कारण से होनेवाली क्रिया अर्थात् कर्मबंध को अध्यात्मप्रत्ययिक सावध क्रिया कहा है। •५१ मानप्रत्ययिकी क्रिया ( स्थान ) ५१.१ परिभाषा | अर्थ जाति, कुल, बल, रूप, तप, श्रुत, लाभ, ऐश्वर्य, प्रज्ञा आदि के मद-अहंकार-अभिमान-गर्व-घमंड के निमित्त से होने वाली क्रिया मानप्रत्यायिकी क्रिया है। सर्व द्रव्यों के विषय में मानप्रत्ययिकी क्रिया हो सकती है। जाति, कुलादि मद के कारण अन्य के प्रति अवहेलना, निन्दा, घृणा, भर्त्सना, पराभव और तिरस्कार-अपमान के भाव होना या अन्य की अवहेलना आदि करना मानप्रत्ययिकी क्रिया के लक्षण है । ५१.२ मानप्रत्ययिकी क्रिया और जीवदंडक : (क) अत्थि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कजइ ? हंता, अस्थि ! कम्हि णं भंते ! जीवाणं परिम्गहेणं किरिया कन्जइ ? गोयमा ! सव्वदव्वेसु, एवं नेरइयाणं जाव बेमाणियार्ण। एवं xxx माणणं xxxl सव्वेसु जीवनेरइयभेदेसु (भेदेणं ) भाणियव्वं ( भाणियव्वा ) निरंतरं जाव वेमाणियाणं ति । पण्ण० प २२ । सू १५७६ । पृ० ४७६ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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