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क्रिया - कोश
मृषावादक्रिया करता हुआ जीव उसी प्रकार कर्मप्रकृति का बंध करता है जैसा प्राणातिपात किया करता हुआ जीव कर्मप्रकृति का बंध करता है - [ देखो क्रमांक २२५]
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• ४६ अदत्तादान क्रिया ( स्थान
४६१ परिभाषा / अर्थ -
(क) अदत्तस्य परकीयस्याऽऽदानं स्वीकरणमदत्तादानं स्तेयम् ।
- सूय० २ । अ २। सू १ । टीका (ख) यद् वस्तु ग्रहीतुं धारयितुं वा शक्यते तद्विषयमादानं भवति न शेषविषयम् अतोऽदत्तादानसूत्रे 'गहणधारणिज्जे दव्वेसु' इत्युक्तम् |
-- पण ० प २२ । सू १५७७ । टीका (ग) अदत्तस्य - स्वामिजीवतीर्थंकर गुरुभिरवितीर्णस्याननुज्ञतस्य सचित्ताचित्तमिश्रभेदस्य वस्तुनः आदानं - ग्रहणमदत्तादानं चौर्यमित्यर्थः तच विविधोपाधिवशादनेकविधमिति । - ठाण० स्था १ । सू ४८ । टीका दूसरे की वस्तु को उसके स्वामी आदि की आज्ञा के बिना ग्रहण करना, स्वीकार करना, धारण करना अदत्तादान - चोरी करना अदत्तादान है । अदत्तादान जो द्रव्य या वस्तु ग्रहण की जा सकती है या धारण की जा सकती है उसीके विषय में हो सकता है। अन्य विषयों में नहीं । अदत्तादान के निमित्त से होने वाली क्रिया - अदत्तादानक्रिया । ४६२ अदत्तादानक्रिया और जीव :
से जहानामए के पुरिसे आयहेउ' वा जाव परिवारहेड' वा सयमेव अदिष्ण आदिय, अन्नेण वि अदिष्ण आदियावेइ, अदिण्णं आदियंत अन्नं समगुजाणइ, एवं खलु तस्स तम्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ । सत्तमे किरिय-हाणे अदिण्णादाणवत्तिए त्ति आहिए । - सू० श्रु० २ । अ २ | सू ८ । पृ० १४७ यदि कोई व्यक्ति अपने लिए, जाति, गृहस्थी या परिवार के लिए स्वयं अदत्तादान ग्रहण करे अर्थात् चोरी करे, दूसरे से करवाए और चोरी करते हुए का अनुमोदन करे तो उस व्यक्ति को अदत्तादानप्रत्ययिक सावद्यक्रिया लगती है । यह सातवाँ अदत्तादानप्रत्ययिक क्रियास्थान है ।
*४६३ अदत्तादानक्रिया और जीवदण्डक :
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(क) अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाश्वाएणं किरिया कज्जइ ? xxx । एगिंदिया जहा जीवा तहा भाणियव्वा । जहा पाणाइवाए XXX तहा अदिन्नादाणे (देखो क्रमांक १ | उ ६ | प्र० २०६ से २१५ / पृ० ४०३
*२२४)
भग
"Aho Shrutgyanam"