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________________ क्रिया - कोश ξε से जहानामए केइ पुरिसे सालीणि वा वीहीणि वा कोहवाणि वा कंगूणि वा परगाणि वा रालाणि वा निलिज़माणे अन्नयरस्स तणस्स वहाए सत्थं निसिरेज्जा, से सामगं तणगं कुमुदुगं वीही-ऊसियं कलेसुयं तणं छिंदिस्सामित्ति कट्टु सालिं वा वी वा कोहवं वा कंगु वा परगं वा रालयं वा द्विदित्ता भवइ, इति खलु से अन्नस्स अट्ठाए अन्नं कुसर अकम्हा दंडे । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं आहिज्जइ । चउत्थे दंड - समादाणे अम्हा दंड वत्तिए आहिए । सू० श्रु २ : अ २ । सू ५ | पृ १४६-४७ टीका -- अकस्मादनुपयुक्तस्य दण्डोऽकस्माद्दण्डः, अन्यस्य क्रिययाऽन्यस्य व्यापादनमिति । - सूप ० श्रु २ । अ २ । सू १ । टीका यदि कोई बहेलिया - शिकार से आजीविका चलाने वाला व्यक्ति मृग को मारने के संकल्प से मृग की खोज में, शिकार के लिए कछार यावत् दुर्गम वनस्थलों में जाकर वहाँ किसी मृग - पशु को देखकर उसको मारने के विचार से धनुष से तीर छोड़े लेकिन बीच में ही अचानक वह तीर किसी तीतर, बटेर, चिड़िया, लावक, कबूतर, बन्दर, चातक पक्षी आदि को बींध दे -- यह किसी एक को मारने के उद्देश्य से हठात् किसी अन्य को मारने वाला अकस्मात् दंड है । यह त्रस की अपेक्षा अकस्मातुदंड है । यदि कोई व्यक्ति-किसान शाली, वीहि, कोद्रव, कंग, परक, राल आदि धान्य के खेत में निरान करते हुए श्यामादिक तृण विशेष को उखाड़ने के लिए दांती - हँसिया चलावे लेकिन बीच में ही अचानक वह शस्त्र शालि, त्रीहि, कोद्रव, कंगू, परक, राल आदि धान्य को भी काट दे । श्यामादिक तृणाविशेष को छेदने के उद्देश्य से हठात् शालि आदि धान्य को छेदने वाला यह स्थावर - वनस्पतिकाय की अपेक्षा अकस्मात् - दंड है । उपर्युक्त दोनों व्यक्तियों को अकस्मात् - दंडप्रत्ययिक सावद्यक्रिया लगती यह चौथा अकस्मात् - दंड प्रत्ययिक दंड-समादान है । ४७ दृष्टिविपर्यास प्रत्ययिक क्रिया ( स्थान ) '४७१ परिभाषा/अर्थ से जहानामए के पुरिसे माईईि वा पिईहिं वा भाईहिं वा भगिणीहिं वा जाहिं वा पुत्तर्हि वा धूयाहिं वा सुण्हाहिं वा सद्धिं संवसमाणे मित्तं अमित्त मेव मन्नमाणे मित्ते हय पुग्वे भवइ दिट्ठि विपरिया सियादंडे | से जहानामए - केइ पुरिसे गाम-वायंसि वा नगर- घायंसि वा खेड-घायंसि कब्बड़-घायंसि मडंब-घायंसि वा दोण-मुह-घायंसि वा पट्टण घायंसि वा आसमघायंसि वा संनिवेस घायंसि वा निग्गम घायंसि वा रायहाणि-घायंसि वा अतेणं " Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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