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क्रिया-कोश तृण के ढेर एकत्रित करके स्वयं उनको अकारण—निरुद्देश्य अग्नि से प्रज्ज्वलित करता है, दूसरे से प्रज्ज्वलित करवाता है तथा प्रज्ज्वलित करने वालों का अनुमोदन करता है—यह अग्निकाय की अपेक्षा अनर्थदंड है ।
उपर्युक्त तीनों व्यक्तियों को अनर्थदंडप्रत्यायिक सावद्य क्रिया लगती है । यह दूसरा अनर्थदंड प्रत्ययिक दंड-समादान है । टीका-निष्प्रयोजनमेव सावधक्रियानुष्ठानमनर्थदण्डः ।
-सूय० श्रु २ । अ । २ सू १ । टीका
'४५ हिंसादण्डप्रत्ययिक क्रिया ( स्थान ) '४५१ परिभाषा / अर्थ
से जहानामए केइ पुरिसे ममं वा ममि वा अन्नं वा अन्निं वा हिंसिसु वा हिंसइ वा हिंसिस्सइ वा तं दंडं तसथावरेहिं पाणेहिं सयमेव निसिर३, अन्नेण वि निसिरावेइ, अन्नं पि निसिरंत समणुजाणइ हिंसादंडे! एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज ति आहिज्जइ । तच्चे दंड-समादाणे हिंसा-दंड-वत्तिए त्ति आहिए ।
-सूय० श्रु २ । अ २ । सू ४ । पृ० १४६ टोका-हिंसनं हिंसा-प्राण्युपमर्दरूपा तया सैव वा दण्डो हिंसादण्डः ।
__ -सूय० श्रु २ । अ २ । सू १ । टीका यदि कोई व्यक्ति यह सोचकर कि अमुक त्रस या स्थावर प्राणी ने मुझको या मेरे परिवार को या स्वजन को या अन्य किसी को मारा है, मारता है तथा मारेगा उस त्रस या स्थावर जीव के प्राण का स्वयमेव हनन करता है, दूसरे से करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है उस व्यक्ति को हिंसादंड-प्रत्ययिक सावधक्रिया लगती है।
यह तीसरा हिंसादंडप्रत्यायिक दंड-समादान है।
'४६ अकस्मात् दंडप्रत्ययिक क्रिया (स्थान) ४६.१ परिभाषा/अर्थ
__ से जहानामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा जाव वण-विदुग्गंसि वा मियवत्तिए मिय-संकप्पे मिय-पणिहाणे मिय-वहाए गंता एए मिय त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए उसु आयामेत्ताणं निसिरेजा ; 'समियं वहिस्सामि'-त्ति कटु तित्तिरं वा वट्टगं वा चडगं वा लावगं वा कवोयगं वा कवि वा कविंजलं वा विधित्ता भवइ, इह खलु से अन्नरस अट्ठाए अन्नं फुसइ अकम्हा दंडे ।
"Aho Shrutgyanam"