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________________ क्रिया-कोश हज किंचि विपरियाइत्ता भवंति ; से हांता छेत्ता भेत्ता लुम्पइत्ता विलुम्पइत्ता उद्दवइसा afts बाले वेरस्स अभागी भवइ अणट्ठादंडे । से जहानामए केइ पुरिसे जे इमे थावरा पाणा भवंति । तंजहा -- इक्कडाइ वा कडिणा इवा, जंतुगा इवा, परगा ३ वा, मोक्खा इवा, तणा इवा, कुसा इवा, कुच्छगा इवा, पव्वगा इवा, पलाला इवा, ते नो पुत्त-पोसणाए, तो पसुपोसणाए, नो अगार- परिवूहणयाए, नो समण-माहण-पोसणयाए, नो तरस सरीरगस्स किंचि विपरियाइत्ता भवंति ; से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवत्ता उज्झिउ बाले वेरस्स आभागी भवइ, अणट्ठादंडे | से जहानामए के पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा उद्गंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा नूमंसि वा गहणंसि वा गहण - विदुरगंसि वा वर्णसि वा वणविदुगांसि वा पव्वयंसि वा पव्वय-विदुग्गंसि वा तणाई ऊसविय ऊसविय सयमेव अगणिकार्य निसिरइ अन्नेण वि अगणिकायं निसिरावेश, अन्नं पि अगणिकार्य निसितं समणुजाण अणट्टा दंडे ! एवं खलु तर तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ । दोच्चे दंड- समादाणे अणट्टादंडवत्तए त्ति आहिए । - सूय० श्रु० २ । अ २ / सू ३ | पृ० १४५-४६ कोई एक व्यक्ति शरीर, चमड़ी, मांस, खून, हृदय, पित्त, वसा (चरबी), पंख, पूँछ, बाल, सींग, दाँत, दाढ़, नख, स्नायु, हड्डी और अस्थि मजा आदि के लिए त्रस जीवों की हिंसा नहीं करता है या इसने मुझे पहले मारा था, मारता है या मारेगा - यह विचार कर या पुत्र - पशु के पालन के लिए, गृहस्थाश्रम की उन्नति के लिए, श्रमण-ब्राह्मण का पालन करने के लिए या अपने शरीर की रक्षा के लिए, हिंसा नहीं करता है परन्तु विवेक के अभाव में व्यर्थ कोड़ार्थ - व्यसनार्थ ही त्रस प्राणियों को छेदता है, भेदता है, काटता है, उनकी चमड़ी उधेड़ता है और उन्हें उद्वेग पहुँचाता है वह अज्ञानी उनके वैर का भागी बनता है । यह त्रस की अपेक्षा अनर्थदंड है । कोई एक व्यक्ति संसार में जो स्थावर प्राणी होते हैं यथा - इक्कड, तृण, वंशग, जंतुरा, परग, मोक्ख, तृण, कुश, कुच्छ्रग, पर्वक, पलालादि (पत्र, फल, पुष्पादि ) प्राणियों का उपर्युक्त की तरह पुन्नादि के पोषण के लिए यावत् स्वशरीररक्षार्थ नहीं परन्तु विवेक के अभाव में क्रीड़ा आदि निमित्त दंडादि के प्रहार से हनन करता है, छेदता है, भेदता है, अंग - - अवयव काटता है, छाल उतारता है, नाना प्रकार की पीड़ा उपजाता है वह अज्ञानी केवल वैर का भागी होता है। यह स्थावर - वनस्पतिकाय की अपेक्षा अनर्थदंड है । कच्छार, जलाशयादि, झीलादि, जल से परिवेष्टित स्थान, घास से परिपूर्ण स्थान, अटवी, गहन अटवी, उतारभूमि, वन, वन के दुर्गमस्थल, पर्वत, पर्वत के दुर्गमस्थलों पर १३ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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