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वास्तव में हमको कर्मबंधनिबंधभूता क्रिया का कोश अलग बनाना चाहिए था तथा सदनुष्ठान क्रिया का अलग। लेकिन हमने दोनों क्रियाओं का विरोधी पक्ष देखकर दोनों का संकलन एक साथ कर दिया है । यदि भावी अध्ययन से यह अनुभव हुआ कि सदनुष्ठान क्रिया का अलग से कोश प्रकाशन करना आवश्यक है तो उसका अलग से प्रकाशन करेंगे।
क्रिया संबंधी तुलनात्मक अध्ययन के लिए हम कई असुविधाओं के कारण अन्य धर्मों के दार्शनिक ग्रंथों का सम्यग् अध्ययन नहीं कर सके, केवल सप्त टीका सहित श्रीमद् भगवद्गीता का ही अध्ययन किया ! उससे प्राप्त क्रिया संबंधी तुलनात्मक पाठों को हमने दे दिया है । ( देखें क्रमांक .६८)
तत्पश्चात् हमें अंगुत्तर निकाय का एक संदर्भ क्रियावाद के संबंध का आचार्य भागचंद जैन की एक अंग्रेजी रचना में मिला । वह अंगुत्तर निकाय का उद्धरण हमने छुटे हए पाठों में पुस्तक के अन्त में दे दिया है ।
सामान्यतः अनुवाद हमने शाब्दिक अर्थ रूप ही किया है लेकिन जहाँ विषय की गम्भीरता या जटिलता देखी है वहाँ अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विवेचनात्मक अर्थ भी किया है। विवेचनात्मक अर्थ करने के लिए हमने सभी प्रकार की टीकाओं तथा अन्य सिद्धांत ग्रंथों का उपयोग किया है ! छदमस्थता के कारण यदि अनुवादों में या विवेचन करने में कहीं कोई भूल, भ्रान्ति व त्रुटि रह गई हो तो पाठक वर्ग सुधार लें । जहाँ मूल पाठ में विषय अस्पष्ट रहा है वहाँ मूल पाठ के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए हमने टीकाकारों के स्पष्टीकरण को भी अपनाया है तथा स्थान-स्थान पर टीका का पाठ भी उद्धृत कर दिया है।
यद्यपि हमने संकलन का काम श्वेताम्बर आगम ग्रंथों तक ही सीमित रखा है तथापि सम्पादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के काम में नियुक्ति, चूर्णी, वृत्ति, भाष्य आदि टीकाओं का तथा अन्य श्वेताम्बर-दिगम्बर सिद्धांत ग्रंथों का भी उपयोग किया है ।
सम्भव है हमारी छद्मस्थता के कारण तथा मुद्रक के कर्मचारियों के प्रमादवश पुस्तक की छपाई में कुछ अशुद्धियाँ रह गई हों। आशा है पाठकगण अशुद्धियों के लिए हमें क्षमा करेंगे तथा आवश्यकतानुसार संशोधन कर लेंगे।
हमारी कोश-परिकल्पना का अभी परीक्षण काल ही चल रहा है अतः इसमें अनेक त्रुटियाँ हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है ! लेकिन अब हमारी परिकल्पना में पुष्टता आ रही है तथा हमारे अनुभव में यथेष्ट समृद्धि हुई है इसमें कोई संदेह नहीं है । पाठक वर्ग से सभी प्रकार के सुझाव अभिनन्दनीय हैं चाहे वे सम्पादन, वगीकरण, अनुवाद या अन्य
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"Aho Shrutgyanam"