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क्रिया-कोश
(च) ईर्यापथनिमित्तेर्यापथक्रिया ।
- सर्व ० अ ६ । सू ५ । पृ०
(छ) ईर्यापथकर्मनिमित्ता ईर्यापथक्रिया ।
जो ऐर्यापथिक क्रिया प्रथम समय में क्रिया है ।
३२२ । ला १
- राज० अ ६ / सू ५ / ० ५०६ । ला २
(ज) ईर्यापथक्रिया तत्र प्रोक्ता तत्कर्महेतुका ।
- श्लोवा० अ ६ । सू ५ । गा७ । पृ० ४४५ 'ईरणमीय' गमन का विशिष्ट पथ या तरीका वह ईर्यापथ उससे होनेवाली क्रियाऐर्यापथिकी क्रिया - यह शाब्दिक—व्यौत्पत्तिक अर्थ होता है ।
जहाँ केवल योगनिमित्त से सातावेदनीय कर्म का वन्ध होता है वहाँ ऐर्यापथिकी क्रिया होती है। अजीव - कर्मपुद्गल का बन्ध होता है। अतः इसको अजीवक्रिया का भेद कहा है यद्यपि यह जीव का व्यापार है । कर्मविशेष के बन्ध की प्रधानता की अपेक्षा इसको अजीव ऐर्यापथिकी क्रिया कहा गया है । ( देखो अजीव क्रिया १२ ) दूसरे शब्दों में योगनिमित्त - जाने, खड़े होने, सोने, बैठने तथा वत्र पात्रादि के लेने रखने यावत् आँखों के पलक के हिलाने मात्र से जो किया होती है वह ऐर्यापथिकी क्रिया । इस क्रिया से सातावेदनीय कर्म का बंध होता है ।
- ३७२ इरियावहिया किरिया दुविहा- बज्झमाणा वेइज्जमाणा य ।
-ठान स्था २ । ७१ । सू. ६० । टोका ऐपथिकी क्रिया दो प्रकार की होती है --- बध्यमान तथा वेद्यमान | ३७.३ भेदों की परिभाषा / अर्थ
* १ बज्झमाणा ऐर्यापथिकी क्रिया, जा (व) पढमसमये बद्धा !
- ठाण० स्था २ । उ १ । सृ ६० । टीका वध्यमान हो वह वध्यमान- ऐर्यापथिकी
'२ वेइज्जमाणा ऐर्यापथिकी क्रिया, बीयसमये वेश्या ।
-ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका जो ऐर्यापथिकी क्रिया द्वितीय समय में वेद्यमान हो वह वेद्यमान-देर्यापथिको क्रिया है ।
३७४ ऐर्यापथिकी क्रिया किसके, कैसे, कियत्कालीन होती है :
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(क) अहावरे तेरसमे किरियट्ठाणे इरियावहिए त्ति आहिज्जइ । इह खलु अत्त ता संवुडस् अणगारस्स ईरियासमियास भासासमियरस एसणासमियस्स आयाणभंडमत्तनिक्वणास मियस्स
उच्चारपासवगखेलसिंघाणजल्लपारिठ्ठाबणियासमियरस
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