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________________ ८० क्रिया - कौश (घ) अदृष्टे यो प्रमृष्टे च स्थाने न्यासो यतेरपि । कायादेः सा त्वनाभोगक्रिया सैताश्च पंच ताः ॥ ---2 - श्लोवा ० अ ६ । सू ५ । गा १६ | पृ० ४४५ अनाभोग अर्थात् अज्ञान जिस क्रिया का निमित्त हो वह अनाभोगप्रत्ययिकी क्रिया कहलाती है अथवा अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित स्थान में शरीरोपकरण फेंकना आदि अनाभोगक्रिया है । '३१२ भेद अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा अणाउत्तआश्यणया चेव अणा उत्तपमज्जणया चेव । -ठाण स्था २ । उ १ । स ६० । पृ० १८६ अनाभोगप्रत्ययिकी क्रिया के दो भेद होते हैं, यथा— अनायुक्तआदानी तथा अना युक्तप्रमार्जनी | *३१३ भेदों को परिभाषा / अर्थ १ अनायुक्त आदानी क्रिया ‘अणाउत्तआइयणया चेव' त्ति अनायुक्तः - अनाभोगवाननुपयुक्त इत्यर्थः तस्या ssदानता - वस्त्रादिविषये ग्रहणता अनायुक्तादानता । -ठान स्था २ । उ १ | सू. ६० । टीका जीव द्वारा अनुपयोगी वस्तुओं या वस्त्रादि के उपयोग रहित ग्रहण करने के निमित्त से होनेवाली क्रिया अनायुक्त आदानी क्रिया कहलाती है । २ अनायुक्तप्रमार्जनी क्रिया 'अणा उत्तपमज्जणया चेव' त्ति अनायुक्तस्यैव पात्रादिविषया प्रमार्जनता अनायुक्तप्रमार्जनता । - ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका जीव द्वारा अनुपयोगी वस्तुओं या पात्रादि के उपयोग रहित प्रमार्जन करने के निमित्त से होने वाली क्रिया अनायुक्तप्रमार्जनी क्रिया कहलाती है । ____ '३२ अनवकांक्षाप्रत्ययिकी क्रिया *३२.१ परिभाषा / अर्थ (क) अनवकांक्षा-स्वशरीराद्यनपेक्षत्वं सैव प्रत्ययो यस्याः साऽनवकांक्षा - ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० | टीका (ख) शाठ्यालस्याभ्यां प्रवचनोपदिष्टविधिकर्तव्यतानादरः अनाकांक्षाक्रिया । प्रत्ययेति । - सर्व ० अ ६ । सू ५ | पृ० ३२२ । ला ११ - राज० अ ६ / सू ५ / पृ० ५१० । ला ८०६ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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