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क्रिया - कौश
(घ) अदृष्टे यो प्रमृष्टे च स्थाने न्यासो यतेरपि ।
कायादेः सा त्वनाभोगक्रिया सैताश्च पंच ताः ॥
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- श्लोवा ० अ ६ । सू ५ । गा १६ | पृ० ४४५ अनाभोग अर्थात् अज्ञान जिस क्रिया का निमित्त हो वह अनाभोगप्रत्ययिकी क्रिया कहलाती है अथवा अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित स्थान में शरीरोपकरण फेंकना आदि अनाभोगक्रिया है ।
'३१२ भेद
अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा अणाउत्तआश्यणया चेव अणा उत्तपमज्जणया चेव ।
-ठाण
स्था २ । उ १ । स ६० । पृ० १८६ अनाभोगप्रत्ययिकी क्रिया के दो भेद होते हैं, यथा— अनायुक्तआदानी तथा अना
युक्तप्रमार्जनी |
*३१३ भेदों को परिभाषा / अर्थ
१ अनायुक्त आदानी क्रिया
‘अणाउत्तआइयणया चेव' त्ति अनायुक्तः - अनाभोगवाननुपयुक्त इत्यर्थः तस्या ssदानता - वस्त्रादिविषये ग्रहणता अनायुक्तादानता ।
-ठान स्था २ । उ १ | सू. ६० । टीका जीव द्वारा अनुपयोगी वस्तुओं या वस्त्रादि के उपयोग रहित ग्रहण करने के निमित्त से होनेवाली क्रिया अनायुक्त आदानी क्रिया कहलाती है ।
२ अनायुक्तप्रमार्जनी क्रिया
'अणा उत्तपमज्जणया चेव' त्ति अनायुक्तस्यैव पात्रादिविषया प्रमार्जनता अनायुक्तप्रमार्जनता । - ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका जीव द्वारा अनुपयोगी वस्तुओं या पात्रादि के उपयोग रहित प्रमार्जन करने के निमित्त से होने वाली क्रिया अनायुक्तप्रमार्जनी क्रिया कहलाती है ।
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'३२ अनवकांक्षाप्रत्ययिकी क्रिया
*३२.१ परिभाषा / अर्थ
(क) अनवकांक्षा-स्वशरीराद्यनपेक्षत्वं सैव प्रत्ययो यस्याः साऽनवकांक्षा - ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० | टीका (ख) शाठ्यालस्याभ्यां प्रवचनोपदिष्टविधिकर्तव्यतानादरः अनाकांक्षाक्रिया ।
प्रत्ययेति ।
- सर्व ० अ ६ । सू ५ | पृ० ३२२ । ला ११ - राज० अ ६ / सू ५ / पृ० ५१० । ला ८०६
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