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________________ क्रिया-कोश ह क्रियाओं को प्रकाशन करने के निमित्त से होने वाली क्रिया वैदारणिकी अथवा वैचारणिकी क्रिया कहलाती है । * ३०२ भेद जद्देव सत्थियाओ ( वेयारणिया किरिया दुबिहा पन्नत्ता, तंजहा - जीववेयारगिया चेव अजीववेयारणिया चेव ) ! -ठाण० स्था २ । उ १ । स ६० / पृ० १८६ वैदारणिकी अथवा वैचारणिकी क्रिया के दो भेद होते हैं, यथा जीव-वैदारणिकी / जीव- वैचारणिकी तथा अजीव-वैदारणिकी / अजीव-वैचारणिकी । ३०.३ भेदों की परिभाषा अर्थ · १ जीव-वैदारणिकी / जीव-वैचारणिकी- २ अजीव-वैदारणिकी / अजीव-वैचारणिकी - जीवम जीवं वा विदारयति—स्फोटयतीति, अथवा जीवमजीवं वाऽऽसमानभाषेषु विक्रीणति सति भाषिको विचारयति परियच्छावेत्ति भणितं होति, अथवा जीवं पुरुषं वितारयति--प्रतारयति वञ्चयतीत्यर्थ असद्गुणैरेतादृशः तादृशस्त्वमिति, पुरुषादिविप्रतारणबुद्ध्यैव वाऽजीवं भणत्येतादृशमेतदिति यत्सा जीववेयारणिआऽ जीववेयारणिया वा । – ठाण० स्था २ 1 उ १ | सू ६० । टीका 1 किसी जीव अजीव वस्तु का फाड़ना --- विदारण करना--- जीव- अजीव-वेदारणिकी किया है । किसी जीव ( घोड़ा, गाय इत्यादि ) या अजोव ( मूर्ति-शंख इत्यादि ) वस्तु को बेचते हुए ठगने के अभिप्राय से उनमें न होने वाले गुणों का वर्णन करना — जीव अजीववैचारणिकी क्रिया है । '३१ अनाभोगप्रत्ययिकी क्रिया *३११ परिभाषा / अर्थ (क) अनाभोगः -- अज्ञानं प्रत्ययो निमित्तं यस्याः सा । -- ठाण० स्था २ । १ । सू ६० । टीका (ख) अनाभोगक्रिया अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जिते देशे शरीरोपकरणनिक्षेपः । -- सिद्ध० अ ६ । सू ६ । पृ० १३ (ग) अप्रसृष्टादृष्टभूमौ कायादिनिक्षेपोऽनाभोगक्रिया | - सर्व० अ ६ । स ५ । पृ० ३२२ । ला ७ -राज अ ६ | सू ५। पृ० ५१० । ला ३ " Aho Shrutgyanam" No ܘ
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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