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क्रिया-कोश (घ) स्च्यादिसंपातिदेशंतमलोत्सर्गः ( देशेऽतमलोत्सर्गः १) प्रमादिनः । शक्तस्य यः क्रियेष्टेह सा समन्तानुपातिकी ॥
--इलोवा० अ६ । सू ५ । गा १५ । पृ० ४४५ चारों तरफ से एकत्र जन-समुदाय में होने वाली क्रिया सामन्तोपनिपातिकी क्रिया होती है।
___ वार्तिककारों ( राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, तत्त्वार्थसिद्ध, सर्वार्थ सिद्ध ) के अनुसार स्त्री पुरुष से भरे-जनाकीर्ण स्थान में मलोत्सर्ग करने से प्रमादियों को लगनेवाली क्रिया सामन्तोपनिपातिकी क्रिया होती है । '२६२ भेद
___ एवं सामन्तोवणिवाइयावि ( सामन्तोवणिवाइया किरिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा जीवसामन्तोवणिवाझ्या चेव अजीवसामन्तोवणिवाइया चेव )।
-ठाण० स्था २ । उ १ । स ६० । पृ० १८६ सामन्तोषनिपातिकी क्रिया के दो भेद होते है, यथा जीवसामन्तोपनिपातिकी तथा अजीवसामन्तोपनिपातिकी। .२६.३ भेदों की परिभाषा अर्थ
१ जीवसामन्तोपनिपातिकी
कस्यापि पण्डो रूपवानस्ति तं च जनो यथा यथा प्रलोकयति प्रशंसयति च तथा तथा तत्स्वामी हृष्यतीति जीवसामन्तोपनिपातिकी!
–ठाण० स्था २ । उ १ । स ६० । टीका यदि किसी का कोई पशु सुन्दर हो तथा जनता उसकी जैसे-जैसे प्रशंसा करे उस प्रशंसा को सुन कर उस पशु का स्वामो वैसे-वैसे यदि हर्षित होता है इस निमित्त से उस पश-स्वामी को जो क्रिया होती है वह जीवसामन्तोपनिपातिकी क्रिया कहलाती है।
२ अजीवसामन्तोपनिपातिकी-- रथादौ तथैव हृष्यतोऽजीवसामन्तोपनिपातिकीति ।
-ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका यदि किसी के रथादि सुन्दर हो तथा जनता उनकी जैसे-जैसे प्रशंसा करे उस प्रशंसा को सुनकर उन रथादि वस्तुओं का स्वामी वैसे-वैसे हर्षित होता है । इस निमित्त से उस रथा दि के स्वामी को जो क्रिया होती है वह अजीवसामन्तोपनिपातिकी क्रिया कहलाती है।
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