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________________ क्रिया-कोश (ङ) अपूर्वप्राणिघातार्थोपकरणप्रवर्तनम् । क्रिया प्रात्ययिकी ज्ञया हिंसा हेतुस्तथा परा || -- श्लोवा० अ ६ । सू५ । गा १४ । ५० ४४५ वाह्य वस्तु के आश्रय से होने वाली किया प्रातीत्यिकी किया होती है। नये-नये पापादानकारी अधिकरणों के उत्पन्न करने से उनके द्वारा प्रातीत्यिकी ---- प्रात्ययिकी किया होती है । *२५२ भेद पानिया किरिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा जीवपाडुनिया चेव अजीवपाडुचिया चैव । -- ठाण० स्था २ । उ १ | सु ६० पृ०१८६ प्रातीत्यिकी क्रिया के दो भेद होते हैं, यथा-जीवप्रातीत्यिकी तथा अजीव प्रातीत्यिकी । २५३ भेदों की परिभाषा / अर्थ - १ जीव प्रातीत्यिकी ७३ 'जीवपाडुच्चिया चेव' त्ति जीवं प्रतीत्य यः कर्मबन्धः सा । - ठाण० स्था २ | उ १ | सू ६० | टोका अन्य जीव के आश्रय से होने वाली क्रिया जीवप्रातीत्यिकी । २ अजीवप्रातीत्यिकी— 'अजीवपाडुच्चिया चेव' त्ति अजीवं प्रतीत्य यो रागद्वे पोद्भवस्तज्जो वा बन्धः सा अजीवप्रातीत्यिकी । - ठाण० स्था २ । उ १ । सू६० | टीका अजीव के आश्रय से उत्पन्न रागद्वेष से होने वाली किया अजीवप्रातीत्यिकी क्रिया होती है । '२६ सामन्तोपनिपातिकी क्रिया *२६१ परिभाषा / अर्थ (क) 'सामन्तोव णिवाइया चेव' त्ति समन्तात् सर्वत उपनिपातो -- जनमीलक - स्तस्मिन् भवा सामन्तोपनिपातिकी । -ठाण स्था २ । उ १ । सू ६० | टीका (ख) समन्तानुपातक्रिया स्त्री-पुरुषनपुंसकपशुसम्पातदेशे उपनीय वस्तुत्यागः । - सिद्ध० अ ६ । सू ६ । ० १२ (ग) स्त्रीपुरुषपशुसंपातिदेशे अन्तर्मलोत्सर्गकरणं समन्तानुपातक्रिया | --सर्व ० अ ६ । सू ५ । पृ० ३२२ । ला ६-७ राज० अ ६ | सू ५ । पृ० ५१० १ ला २-३ १० "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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