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क्रिया कोश कज्जइ, णो तदुभयकडा कज्जइ । सा भंते ! किं आणुपुष्विं कडा कज्जइ, अणाणुपुव्विं कडा कज्जइ ? गोयमा ! आणुपुव्विं कडा कज्जइ, नो अणाणुपुष्विं कडा कज्जइ, जा य कडा जा य कज्जइ जा य कज्जिस्सइ सव्वा सा आणुपुषिवं कड़ा, नो अणाणुपुटिव कड त्ति वत्तव्वं सिया ।
अत्थि णं भंते ! नेरइयाणं पाणाश्वायकिरिया कज्जइ ? हंता, अस्थि। सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कन्जइ ? जाव नियमा छदिसिं कज्जइ । सा भंते ! किं कडा कज्जइ, अकडा कज्जइ ? तं चेव जाव नो अणाणुपुव्विं कडत्ति वत्तव्वं सिया, जहा नेरच्या तहा एगिदियवज्जा भाणियव्वा जाव वेमाणिया । एगिदिया जहा जीवा तहा भाणियव्वा ।
-भग० श १ । उ ६ । प्र २०६ से २१४ । पृ० ४०२-३ (ख) अस्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया काज ? हंता गोयमा ! अस्थि । कम्हि ( कम्हि ) णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ ? गोयमा ! छसु जीवनिकाएसु।
___ अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ ? गोयमा ! एवं चेव । एवं जाव निरंतरं वेमाणियाणं । -पण्ण० प २२ । सू १५७४-५ । पृ० ४७६
(क) जीव प्राणातिपात के द्वारा क्रिया करते हैं तथा वह क्रिया स्पृष्ट होती है, अस्पृष्ट नहीं होती है। यदि वह क्रिया नियाघात हो तो छओं दिशाओं से और सव्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशा से, कदाचित चार दिशा से तथा कदाचित पाँच दिशा से स्पृष्ट होती है। वह क्रिया कृत है, अकृत नहीं है। आत्मकृत है, परकृत तथा तदुभयकृत नहीं है । वह क्रिया अनुकमपूर्वक कृत है, अननुक्रमपूर्वक कृत नहीं है, जो क्रिया की जा रही है तथा जो की जायेगी वह सर्व क्रिया अनुक्रमपूर्वक है, अननुक्रमपूर्वक नहीं है ।
नरक के जीव प्राणातिपात के द्वारा किया करते हैं तथा वह क्रिया स्पृष्ट होती है तथा वह क्रिया नियम से छों दिशाओं से स्पृष्ट होती है। अवशिष्ट विवेचन जीवों के विवेचन की तरह जानना ।
जैसा नारकी जीवों का कहा वैसा एकेन्द्रिय जीवों को वाद देकर वैमानिक तक दंडक के सभी जीवों के लिये कहना।
जैसा औधिक जीवों का कहा वैसा संपूर्ण एकेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में कहना ।
(ख) जीव प्राणातिपात के द्वारा क्रिया करते हैं तथा जीव प्राणातियात की क्रिया छ: जीवनिकाय के विषय में करते हैं। दंडक के सभी जीवों के सम्बन्ध में ऐसा ही जानना।
"Aho Shrutgyanam"