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________________ क्रिया - कोश ६७ (ग) पाणावायकिरिया णं भंते! कडविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! तिविहा पन्नत्ता, तंजहा— जेणं अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा जीवियाओ ववरोवेइ, से तं पाणाश्वायकिरिया । (घ) प्राणातिपातक्रियाऽपि द्विविधा -- स्वपरव्यापादनभेदात् । - सिद्ध ० अ ६ । सू. ६ / पृ० १२ प्राणातिपातिकी क्रिया के दो भेद होते हैं, यथा स्वहस्तप्राणातिपातिकी तथा परहस्तप्राणातिपातिकी । अन्य अपेक्षा से स्व, पर व दोनों के प्राण हनन के कारण इसके तीन भेद होते हैं । २२३ भेदों की परिभाषा / अर्थ १ स्वहस्तप्राणातिपातिकी क्रिया (क) स्वहस्तेन स्वप्राणान् निर्वेदादिना परप्राणान् वा क्रोधादिना अतिपातयतः स्वहस्तप्राणातिपातक्रिया । - ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका गिरिशिखरप्रपातज्वलनप्रवेशजलप्रवेशास्त्रपाट - पण्ण० प्र २२ । सू १५७२ । ०४७८ (ख) स्वप्राणातिपातजननी नादिका । - सिद्ध० अ ६ । सू ६ । पृ० १२ निराश होकर अथवा क्रोधावेश में गिरिशिखर से गिरकर अग्नि अथवा जल में प्रवेश कर अथवा शस्त्रों के आघात से अपने हाथों अपने अथवा दूसरों के हाथों से प्राणहनन करना स्वहस्तप्राणातिपातिकी क्रिया कहलाती है । २ परहस्तप्राणातिपातिकी क्रिया (क) परहस्तेनापि तथैव ( स्वप्राणान् निर्वेदादिना परप्राणान् वा क्रोधादिना अतिपातयतः ) परहस्तप्राणातिपातक्रिया | --ठाण स्था २ । उ १ । सू ६० | टीका मोहलो भक्रोधाविष्टा प्राणव्यपरोपणलक्षणा - सिद्ध अ ६ । सू ६ | पृ० १२ लोभ, मोह, क्रोध अथवा निर्वेद के वशीभूत होकर दूसरे के हाथ से अपने अथवा दूसरे के प्राण का हनन करना परहस्तप्राणातिपातिकी क्रिया कहलाती है । (ख) परप्राणातिपातजननी तु क्रियते । २२४ प्राणातिपातक्रिया और जीवदंडक (क) अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ ? हंता, अत्थि | खा भंते ! किं पुट्ठा कज्जर, अपुट्ठा कज्जइ ? जाव निव्वाघापणं छद्दिसिंवाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं । सा भंते! किं कडा कज्जइ अकडा कज्जइ ? गोयमा ! कडा कजइ, नो अकडा कज्जइ । सा भंते! किं अन्तकडा कज्जइ, परकडा कज्जइ, तदुभयकडा कज्जइ ! गोयमा ! अत्तकडा कज्जइ, णो परकडा "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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