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क्रिया - कोश
केवल चोट - आघात पहुँचा तो उस प्राहारिक कार्य से प्रहार करने वाले जीव को प्राणातिपातिकी क्रिया न लग कर पारितापनिकी क्रिया तक की चार क्रिया लगती है ।
पापस्थान के अंग रूप प्राणातिपातिकी क्रिया में पाँच इन्द्रिय, तीन वल, उच्छ्वास- निःश्वास तथा आयुष्य इन दस प्राणों में कोई एक या अनेक या करना प्राणातिपात है ।
सबका वियोग
तप्पज्जायविणासो, दुक्खप्पाओ य संकिलेसो य । एस वही जिणभणिओ, वज्जेयवो पयत्तेणं ॥
जीव की पर्याय का विनाश, जीव को दुःख देना, उसको संक्लेश - खेद उपजानावध - प्राणातिपात है ।
“अभिया-वत्तिया - लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया - किलामियाउद्दविया ठाणा ओठाणं-संकामिया-जीवियाओ-ववरोविया ।"
जीव को सामान्य से सामान्य कष्ट पहुँचाने से लेकर प्राण-काय को जुदा करने तक सब कार्यों के निमित्त प्राणातिपातिकी पापस्थान क्रिया लगती है । ]
(क) 'पाणाश्वायकिरिय' त्ति प्राणातिपातः प्रसिद्धः, तद्विषया क्रिया, प्राणातिपात एव वा क्रिया प्राणातिपातक्रिया । -- भग० श ३ । उ ३ । प्र ६ । टीका (ख) जीवियाओ ववरोवेइ, से त्तं पाणाश्वायकिरिया ।
- पण्ण० प २२ । सू १५७२ / पृ० ४७८-४७६ टीका- 'पाणाश्वायकिरिया' इति प्राणा---: -- इन्द्रियादयस्तेषामतिपातो विनाशस्तद्विषया प्राणातिपात एव वा क्रिया प्राणातिपातक्रिया ।
वियोगकरणात् प्राणाति
- सर्व ० अ ६ । सू५ । पृ० ३२२ । ला ३४ (घ) आयुरिन्द्रियबलप्राणानां वियोगकरणात् प्राणातिपातिकी ( क्रिया ) ।
(ग) आयुरिन्द्रियबलोछ्वासनिःश्वासप्राणानां पातिकी क्रिया ।
-राज० अ ६ / सू ५ ० ५०६ । ला ३२-३३
जिससे जीव के प्राण - इन्द्रियादि, आयु, बल, श्वास- निःश्वास का अतिपात-नाश हो वह प्राणातिपातिकी क्रिया कहलाती है ।
*२२*२ भेद
(क) पाणावाय किरिया दुबिहा पन्नत्ता, तंजहा - सहत्थपाणाश्वायकिरिया चेव, परहत्थपाणाश्वायकिरिया चैत्र ।
- ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० पृ० १८६ (ख) पाणाश्वायकिरिया णं भंते! किरिया कइविहा पन्नत्ता ? मंडियपुत्ता ! दुविहा पन्नता, तंजहा सहत्थपाणाश्चायकिरिया य परह्त्थपाणाश्वायकिरिया य ।
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- भग० श ३ । उ ३ । प्र ६ । ४५६
"Aho Shrutgyanam"