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क्रिया-कोश (ख) 'सहत्थपारियावणिया य' त्ति स्वहस्तेन स्वस्य, परस्य, तदुभयस्य वा परितापनाद् असातोदीरणाद् या क्रिया, परितापनाकरणमेव वा सा स्वहस्तपारितापनिकी।
--भग० श ३ । उ ३ । प्र५ । टीका (ग) येन प्रकारेण कश्चित् कुतश्चित् हेतोरविवेकत आत्मन एवासात--- दुःखरूपां वेदनामुत्पादयति ।
-पण्ण० प २२ । सू१५७१ । टीका (घ) तत्र स्वदेहपरितापकारिणी पुत्रकलत्रादिवियोगदुःखभाराद्यतिपीड़ितस्यात्मनस्ताड़नशिररकोटनादिलक्षणा।
-सिद्ध० अ ६ । सू६ । पृ० १२ अपने हाथ से अपने को, दूसरों को अथवा दोनों को दुःख-कष्ट अथवा पीड़ा पहुँचाना स्वहस्तपारितापनिकी क्रिया है । सिद्धसेनगणि के अनुसार स्त्री-पुत्रादि स्वजन के 'वियोगजनित शोक से संतप्त होकर अपनी छाती पीटने अथवा शिर फोड़ने आदि की क्रिया स्वहस्तपारितापनिकी क्रिया कहलाती है।
२ परहस्तपारितापनिकी ----
(कः परहातेन तथैव ( स्वदेहस्य परदेहस्य वा परितापनं कुर्वतः ) च तत्कारयतः परहस्तपारितापनिकी।
-ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६०1 टीका (ख) एवं परहस्तपारितापनिकी अपि ( परहस्तेन स्वस्य, परस्य, तदुभयस्य वा परितापनाद् असातोदीरणाद् या क्रिया, परितापनाकरणमेव वा सा परहस्तपारितापनिकी)
--भग° श ३ । उ ३ । प्र५ ! टीका (ग) परपरितापकारिणी पुत्रशिष्यकलत्रादिताड़नम् ।
-सिद्ध० अ ६ । सू६ । पृ० १२ जिस क्रिया द्वारा दूसरे के हाथ से अपने को, दूसरे को अथवा दोनों को परिताप-- दुःख-कष्ट पहुँचे अथवा जो किया उनके दुःख-कष्ट आदि का कारण बने वह परहस्तपारितापनिकी क्रिया कहलाती है। सिद्धसेनमणि के अनुसार स्त्री-पुत्र-शिष्यादि को मारने की क्रिया परहस्तपारितापनिकी क्रिया कहलाती है ।
.२२ प्राणातिपातिकी क्रिया २२.१ परिभाषा | अर्थ
[ प्राणातिपातिकी क्रिया के दो रूप है, एक है कायिको क्रियापंचक के अंगरूप तथा दूसरा है अठारह पापस्थान के अंगरूप । कायिकी क्रियापंचक वाली प्राणातिपातिकी क्रिया जीव-काया के जुदा होने से अर्थात् जीव की मृत्यु होने से ही होती है, जैसे किसी जीव पर खङ्गादि का प्रहार किया गया लेकिन उससे उस जीव की प्राणहानि नहीं हुई
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