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क्रिया-कोश
मिथ्यात्वनिमित्त से जो क्रिया होती है वह मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया
कहलाती है । *१७२ भेद
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मिच्छादंसणवत्तिया किरिया दुविहा पन्नत्ता, तंत्रा- ऊणाइरित्तमिच्छादंसणबत्तिया चेव तव्वरितमिच्छादंसणवत्तिया चेव ।
-ठाण स्था २ । उ १ । सू ६० । पृ० १८६ मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी किया के दो भेद होते हैं, यथा---ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी तथा तद्व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी । * १७३ भेदों की परिभाषा / अर्थ —
१ ऊनातिरिक्तमिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी
ऊणाइरित्तमिच्छादंसणवत्तिया चेव' त्ति ऊनं - स्वप्रमाणाद्धीनमतिरिक्त-- ततोऽधिकमात्मादिवन्तु तद्विषयं मिथ्यादर्शनमूनातिरिक्तमिथ्यादर्शनं तदेव प्रत्ययो यस्याः सा ऊनातिरिक्तमिथ्यादर्शनप्रत्ययेति, तथाहि कोऽनि मिध्यादृष्टिरात्मानं शरीरव्यापकमपि अंगुष्ठपर्वमात्रं ( यवमात्रं ) श्यामाकतन्दुलमात्रं वेति हीनतया वेति तथाऽन्यः पञ्चधनुःशतिकं सर्वव्यापकं वेत्यधिकतयाऽभिमन्यते ।
- ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० | टोका आत्मादि वस्तुओं के प्रमाण से अधिक या कम मानने या कहने रूप जो मिथ्यादर्शन है उम्र मिथ्यादर्शन निमित्त से जो क्रिया होती है यह मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कहलाती है।
यथा प्रमाण बात तो यह है कि आत्मा शरीरव्यापक है, फिर भी यदि कोई उसे अंगुष्ठपर्वमात्र, यवमात्र या श्यामाक जाति के चावल के कणमात्र छोटी कहे अथवा कोई पाँच सौ धनुष प्रमाण बड़ी कहे अथवा सर्वव्यापक कहे तो उसे जो किया लगती है वह ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया होती है ।
२ तद्व्यतिरिक्त- मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी
'तव्यइरित्तमिच्छादंसणवतिया चेव' त्ति तस्माद् ऊनातिरिक्तमिथ्यादर्शनाद व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शनं नास्त्येवात्मेत्यादिमतरूपं प्रत्ययो यस्याः सा तथेति । --ठाण स्था २ । उ १ । सृ ६० ३ टीका
उपर्युक्त ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शन से भिन्न मिथ्यादर्शन निमित्त से -- यथा 'आत्मा नहीं है' इत्यादि मान्यता रूप मिथ्यादर्शन निमित्त से जो क्रिया होती है वह तद्व्यतिरिक्तमिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी किया कहलाती है ।
नोट :-- मिथ्या दर्शनप्रत्ययकी का विवेचन आरम्भिकी क्रियापंचक (कमांक ६५) में भी देखो । ( क्रमांक ४० तथा ६२ ) भी देखा |
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