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क्रिया-कोश
लेकिन श्रावक कुलपुत्र ने तलवार ग्रहण करने की अनिच्छा दिखाई । राजा ने पूछा कि तुम क्यों नहीं ग्रहण करते हो ? उसने कहा--"हमारी ऐसी स्थिति-मर्यादा है कि मैं इसे इस प्रकार ग्रहण नहीं कर सकता हूँ क्योंकि यह अधिकरण है ।" अत्यन्त शीघ्रता होने से--- खोज करने पर भी जब तलवार हाथ न लगो और अधिकरण होने के कारण मैंने उसका परित्याग कर दिया अतः इसको अब लेना मुझे कल्पता नहीं है।
इस पर राजा ने प्रमाद करने वाले--तलवार की खोज नहीं करने वाले कुलपुत्र को शिक्षा दी और दूसरे को मुक्त कर दिया ।
इस कथा का उपनय इस प्रकार है-वह प्रमादी कुलपुत्र परित्याग नहीं करने के दोष से अपराध को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार जीव भी जन्म-जन्मान्तर में प्राप्त हुए शरीर
और शस्त्रादि का यदि परित्याग नहीं करता है तो अनुमोदन के भाव से दोष को प्राप्त होता है। ऐसा सुना जाता है कि कितने जीव जातिस्मरणा दि ज्ञान के द्वारा पूर्वभव के शरीर को पहिचान कर अति मोह से अपनी अस्थियों को गंगानदी में ले जाकर डाल देते हैं।
१७ मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया १७.१ परिभाषा अर्थ
(क) “मिच्छादंसणवत्तिया” त्ति मिथ्यादर्शन -मिथ्यात्वं प्रत्ययो यस्याः सा तथेति।
ठाण० स्था २ । उ १ । सू६० । टीका __(ख) 'मिच्छादसणवत्तिया' इति । मिथ्यादर्शनं प्रत्ययो---हेतुर्यस्याः सा मिथ्यादर्शनप्रत्यया ।
-भग° श १ । उ २ । प्र८० । टोका
--पण्ण० प २२ 1 सू १६२१ । टीका (ग) विरुद्धफललिप्सया मिथ्यादर्शनमागंण सन्ततप्रयाणमन्यं साधयामीत्यनुमोदमानस्य मिथ्यादर्शनक्रिया।
-..सिद० अ६। सू६ । पृ० १३ । (घ) अन्यं मिथ्यादर्शनक्रियाकरणकारणाविष्टं प्रशंसादिभिद्र ढयति यथा साधु करोषीति सा मिथ्यादर्शनक्रिया ।
. सर्व १६ । सू. ५, पृ०३२३ । ला २-२
-राज अ६ । सू । ०५१० । १२१३ (ङ) मिथ्यादिकारणाविष्टदृष्टीकरणमत्र यत् ।। प्रशंसादिभिरुक्तान्या सा मिथ्यादर्शनक्रिया ॥
-इलोवा० अ६। सू ५ । गा २५ ! पृ० ४४६
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