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________________ क्रिया-कोश जहा सो पमायगभेग अवोसिरियदोसेग अवराह पत्तो एवं जीवोवि जम्मतरत्थं देहोवहाइ अवोसिरंतो अणुमयभावतो पावेइ दोसं ? श्रूयते च जातिस्मरणादिना विज्ञाय पूर्वदेहमतिमोहात (केचित् सुरनदी प्रत्यस्थिशकलानि नयन्तीति । ---.. पपण० प २२ । सू १५८८ । टीका पूर्वाचार्यों द्वारा बताई हुई भावना इस प्रकार है-इस संसाररूपी अटवी में परिभ्रमण करते हुए सभी जीवों ने स्थान-स्थान पर शरीर-आयुधादि अधिकरण छोड़े हैं और उन शस्त्रों द्वारा जिस किसी को स्वतः भी पीड़ा आदि होती है तो भवान्तर में गये हुए उन शरीर-आयुधादि के स्वामी को यदि वह उससे निवृत्त नहीं हुआ है तो किया का होना संभव है । परन्तु यदि उनका त्याग करे तो क्रिया का होना संभव नहीं है क्योंकि वह उससे निवृत्त हो चुका है । उदाहरण को एक कथा है :---- बसन्तपुर नगर में अजितसेन राजा की सेवा करने वालों में दो कुलपुत्र थे। उनमें से एक श्रमणोपासक था और दूसरा मिथ्यटष्टि था । किसी रात को राजा को बाहर जाना हुआ । जल्दी में घोड़े पर चढ़ते हुए श्रावक कुलपुत्र की तलवार नीचे पड़ गयी । श्रावक कुलपुत्र ने उसकी खोज की परन्तु मनुष्यों की भीड़ और कोलाहल में तलवार नहीं मिली। दसरा कुलपुत्र हँसा कि क्या दूसरी तलवार नहीं मिल सकती। शस्त्र को अधिकरण समझ कर श्रावक कुलपत्र ने वोसरा दिया-परित्याग कर दिया। उस तलवार को कुछ लोगों ने उठा लिया। लन तलवार उठाने वालों ने राजा के एक प्रिय आदमी को पकड़ा था और जब वह भागने लगा तो उसको मार दिया। उसके बाद आरक्षक लोग उनको पकड़ कर राजा के पास ले गये और सारा वृत्तान्त कहा। राजा कोधित हो गया। उसने पूछा कि तुम कौन हो ? उन्होंने कहा--"हम अनाथ हैं, एक समय हम कार्प टिक भिक्षुक थे !” “यत तलवार तुमको कहाँ मिली ४" उन्होंने उत्तर में कहा"पड़ी हुई थी।" इसके बाद राजा ने क्रोधपूर्वक कहा कि जिनके साथ मेरा बैर नहीं है-ऐसे महाप्रमादी कुलपुत्रों की खोज करो और पता लगाओ कि यह तलवार किसकी है । इस पर राजपुरुषरों ने अच्छी तरह खोज की और राजा को जनाया कि यह गुणचन्द्र और बालचन्द्र की तलवार है। इसके बाद राजा ने दोनों को अलग-अलग बुलाया और कहा--- "यह तुम्हारी तल. वार लो"। एक कुलपुत्र ने तलवार ले लो। राजा ने पूछा "तुम्हारी तलवार के से खोई' ! उमने जैसा हुआ था वैसा कहा । पूछा गया कि तुमने खोज क्यों नहीं की ? उसने जबाब दिया---"आपको हमारे पर अत्यन्त कृपा है अतः इस तलवार मात्र की खोज क्यों करू?"। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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