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________________ क्रिया-कोश अतः भगवान ने उनका असंयत, अविरत, पापकों के प्रत्याख्यान से रहित, सक्रिय, असंवृत्त, एकान्तहिंसक, एकान्त-अज्ञानी, एकान्तसुप्त कहा है तथा वे बाल अज्ञानी अविचारित मन-वचन-काया के परिणाम वाले तथा स्वप्न में भी पापकर्म नहीं देखने वाले होते हुए भी पाप कर्म का बंध (प्रत्याख्यान के अभाव में) करते हैं । __(ज) क्या करने से जीव के पापकर्म का बंध नहीं होता : -- चोयए–'से किं कुठवं, किं कारवं, कहं संजयविरयप्पडिय-पच्चरवाय-पाव कम्मे भवइ ? आयरिय आह—'तत्थ खलु भगवथा छजीवनिकायहेऊ पन्नत्ता, तंजहा-पुढवी. काश्या जाव तसकाइया। से जहानामए मम अस्सायं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा आतोडिजमाणस्स वा जाव उवद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा आतोडिजमाणे वा हम्ममाणे वा तजिज्जमाणे वा तालिज्जमाणे वा जाव उवदविजमाणे वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति । एवं णच्चा सब्चे पाणा जाव सव्वे सत्ता ण हंतव्वा जाव ण उद्दवेयव्वा । एस धम्मे धुवे णिइए सासए समिञ्च लोगं खेयन्नेहि पवेइए । एवं से भिक्खू विरए पाणावायाओ जाव मिच्छादसणसल्लाओ। xxxi' एस खलु भगवया अक्खाय संजय-विरय-पडिहय पच्चक्खाय पावकम्मे, अकिरिए, संवुडे, एगतपडिए भवइ त्ति बेमि । ---सूथ २ अ ४ । सू ५। पृ० १६८-६६ प्रवादी ने पूछा-क्या करने से, क्या कराने तथा कैसे जीव संयत, विरत होता है तथा पापकर्मों से प्रत्याख्यानी बनता है अर्थात् कर्म के बंध से बचता है ? आचार्य ने कहा-भगवान ने पृथ्वीकाय यावत् त्रसकाय रूप छः जीवनिकाय को पापकर्मबंध का हेतु कहा है। यदि कोई मुझको दंड से, अस्थि से, मुष्टि से, पत्थर से, कंकड़ से असाता--दुःख उत्पन्न करे-ताड़ना यावत् उद्वेग उत्पन्न करे यावत् जीव-काया से जुदा करे यावत् रोम उखाड़ने मात्र जितना कष्ट दे उससे जितना दुःख और भय मुझे अनुभूत होता है उसी प्रकार यह जानना चाहिए कि सर्व प्राण-भूत-जीव-सत्त्वों को मेरी तरह दंड यावत् कंकड से, ताड़ना करने से यावत् उद्वेग पैदा करने से यावत् जीव-काया से जुदा करने से यावत् रोम उखाड़ने मात्र की हिंसा से उनको दुःख-भय अनुभूत होता है । ऐसा जान करके सर्वप्राण-भूत-जीव-सत्त्वों का हनन नहीं करना चाहिए. यावत् उप "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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