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क्रिया-कोश यदि वह प्रत्यक्षसंज्ञो जीव छहों जीवनिकायों द्वारा कोई कार्य करता है, कराता है तब वह यही बात कहता है कि मैं छहों जीवनिकायों के द्वारा कार्य करता हूँ और कराता हूँ। तब उसके विषय में ऐसा नहीं कह सकते हैं कि वह अमुक अमुक छहों जीवनिकायों के द्वारा कार्य करता है और कराता है लेकिन यही कहना होगा कि वह छहों जोधनिकायों के द्वारा कार्य करता है और कराता है । अतः वह सभी षड्जीवनिकायिक जीवों के विषय में असंयत, अविरत और पापकर्म के प्रत्याख्यान से रहित होता है ।
___ उपर्वक्त विवेचन प्राणातिपात यावत् मिश्यादर्शनशल्य अठारह पापों पर ही घटा लेना चाहिये।
अतः भगवान् ने कहा कि असंयत, अविरत, पापकर्म के प्रत्याख्यान से रहित जीव जो स्वप्न में भी पापक्रम नहीं देखता है उसको भी पापकर्म का (अप्रत्याख्यान की अपेक्षा) बंध होता है।
२ असंज्ञी दृष्टान्त :से किं तं असन्निदिहन्ते ?
जे इमे असन्निणो पाणा,तंजहा---पुढवीकाझ्याजाव वनस्सइकाइया छट्ठा वेगइया तसा पाणा, जेसि नो तक्का इ वा सन्ना ३ वा पन्ना इ वा मणा इ वा वई इ वा सयं वा करणाए, अन्नेहिं वा कारवेत्तर, करतं वा समुणजाणित्तर, ते वि णं बाले सव्वेर्सि पाणाणं जाव सव्वेसि सत्ताणं दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूया मिच्छासंठिया निच्चं पसढ विउवाय चित्तदंडा, तंजहा...-पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले । इच्चेव जाव णो चेव मणो णो चेव वई पाणाणं जाव सत्ताणं दुक्खणयाए, सोयणयाए, जूरणयाए, तिप्पणयाए, पिट्टणयाए, परित्तप्पणयाए, ते दुक्खण सोयण जाव परितप्पण-वह बंधणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरिया भवंति।
___ इति खलु से असन्निणो वि सत्ता अहोनिसिं पाणाइवाए उवक्खाइज्जति जाव अहोनिसि परिग्गहे उवक्खा इज्जति जाव मिच्छादसणसल्ले उवक्खाइज्जति । [ एवं भूयवाई ]
सव्व जोणिया वि खलु सत्ता सन्निणो हुचा असन्निणो होति, असन्निणो हुच्चा सन्निणो होति । होच्चा सन्नी अदुवा असन्नी, तत्थ से अविविचित्ता, अविधूणित्ता, असंमुच्छित्ता, अणणुतावित्ता असन्निकायाओ वा सन्निकाए संकमंति, सन्निकायाओ वा असन्निकायं संकमंति । सन्निकायाओ वा सन्निकायं संकमंति, असन्निकायाओ वा असन्निकायं संकमंति। जे एए. सन्नि वा असन्नि वा सव्वे ते मिच्छायारा निच्चं पसढ-विउवाय-चित्तदंडा, तंजहा-- पाणाश्वाए जाव मिच्छा'सणसल्ले।
-- सूब० श्र २ | अ ४ । सू४ । पृ० १६८
"Aho Shrutgyanam"