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क्रिया-कोश
आचार्य ने कहा --इस सम्बन्ध में ( तुम्हारी इस आपत्ति का निराकरण करने के लिये ) भगवान ने संशी दृष्टान्त और असंज्ञी दृष्टान्त-ये दो दृष्टान्त कहे हैं ।
टीकाकार :- यद्यपि सर्व देश-काल-स्वभाव में सब जीवों के प्रति हिंसा के परिणाम, वधक-चित्तवृत्ति नहीं उत्पन्न होती है तथापि अविर ति के सद्भाव से मुक्तवैर नहीं होने से पापकर्म का बंध होता है। इसके समर्थन में भगवान ने दो दृष्टान्त बतलाये हैं ।
१ संज्ञी दृष्टान्त :--- से किं तं सन्निदिते ::
जे इमे सन्निपंचिदिया एज्जत्तगा एसिं गं जीवनिकाए पडुम, तंजहापुढवीकार्य जाव तसकायं । ऐ एगइओ पुढवोकाएणं किच्छ करेइ वि, कारवेइ वि, तस्स णं एवं भवइ--एवं खलु अहं पुढवीकापणं किच्च करेमि वि, कारवेमि वि । णो चेव णं से एवं भव ... इमेण वा इमेण बा! से एएणं पुढवीकाएणं कि करेइ वि, कारवई वि! से गं तओ पुढवीकायाओ असंजय अविरय-अप्पडिहय-पञ्चक्खायपावकम्मे यावि भव । एवं जाब तसकाए ति भाणियवं ! से एगइओ छजीवनिकाएहिं किच्चं करेइ वि, कारवेद वि! तस्स णं एवं भवइ एवं खलु छजीवनिकाएहिं किञ्च करेमि वि, कारवेमि वि । णो चेव णं से एवं भवतु । इमेहिं वा इमेहिं वा। से य तेहि छहिं जीवनिकाएहिं जाव कारवेइ वि । से य तेहि छहिं जीवनिकाएहिं असंजय-अविरयअप्पडिहय-पञ्चक्खाथ-पाधकम्मे, तंजहा-पाणाश्वाए जाव मिच्छादंसणसल्ले । एस खलु भगवया अक्वाए असंजए, अविरए, अप्पडिय-पचक्खाय-पावकम्मे सुविणमवि अपस्सओ । पावे य से कम्मे कजइ । से तं सन्निदिट्ठन्ते ।
-सूच० २२ । अ४ । सू४ । पृ० १६७-६८ प्रवादी ने पूछा-वह संज्ञी दृष्टान्त क्या है?
आचार्य ने कहा-प्रत्यक्षसंज्ञी (जो सब प्रकार से पर्याप्त हो तथा जिसमें ऊहापोह अर्थात् विचार-विमर्श करने की पर्याप्त शक्ति हो ) ऐसे प्रत्यक्ष संज्ञी पचेंद्रियों में से कोई जीव छः जीवनिकाय के जीवों में से एक पृथ्वी काय के द्वारा कोई कार्य करता है, कराता है, तव वह यही बात कहता है कि मैं पृथ्वीकाय के द्वारा कार्य करता हूँ और कराता हूँ। तब उसके विषय में ऐसा नहीं कह सकते हैं कि वह अमुक-अमुक पृथ्वी काय के द्वारा कार्य करता है
और कराता है लेकिन यही कहना होगा कि वह ..वी काय के द्वारा कार्य करता है, कराता है, अतः वह सभी पृथ्वो कायिक जीवों के विषय में असंयत, अभिरत और पापकर्म के प्रत्याज्यान से रहित होता है।
इसी प्रकार अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय तथा उसकाय के सम्बन्ध में भी एक एक करके निवेचन कर लेना चाहिये ।
"Aho Shrutgyanam"