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________________ ४६ क्रिया - कोश काया और वाक्य से अविचारी या विचार- रहित और पापकर्म में किसी भी प्रकार की बाधा - रुकावट से रहित भी होती है । भगवान ने कहा है कि ऐसे जीव असंयमी, अत्रती, पापकर्म करने में किसी भी बाधा -- रुकावट से रहित, सक्रिय, असंवृत्त, एकान्त सावध प्रवृत्तिवाले, एकान्त बाल और एकान्त सुप्त हैं, मन-वचन और काया से विचार- रहित तथा स्वप्न जितनी चेतना से रहित हैं फिर भी वे जीव पापकर्म का बंध करते हैं । (ख) प्रतिस्थापना :- अविचारपूर्वक कर्म करने वालों को पापकर्म का बंध नहीं होता है । तत्थ चोयए पन्नवर्ग एवं वयासी- असंतपणं मणेणं पावपूर्ण असंतियाए वईए पाविया, असंतपणं कारणं पावएणं अहह्णन्तस्स, अमणक्खस्स, अवियार-मण-वयण कायरस सुविणमवि अपस्सओ पावकम्मे णो कज्जइ । कस्सणं तं हेउं ? चोयए एवं बची- अन्नयरेण मणेणं पावएणं मणवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरीe ase पावियाए ववत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरेणं कायेणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, हणंतरस, समणक्वस्स, सवियार-मण-वयण- कायवकास सुविणमवि पासओ एवं गुण जाइयास पावे कम्मे कजइ । पुनरवि चोयए एवं बवीइ-तत्थणं जे ते एवमाहंसु -- असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वइए पावियाए, असंतएणं कायेणं पावएणं, अहणंतस्स, अमणक्खरस, अवियार-मण-वयण- कायवक्करस सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जइ । तत्थणं जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु । - सूय० श्र २ । अ ४ । सू २ | पृ० १६६ आचार्य के उपर्युक्त कथन से प्रेरित होकर प्रवादी बोला - जिसके मन, वचन और काया पाप करने में लगे हुए न हों, जो हिंसा न करता हो, जिसके मन न हो या जिसके मन, वचन और काया की वक्रता या प्रवृत्ति अविचारपूर्वक होती हो या जो स्वप्नदर्शक जितनी भी चेतनावाला न हो वह पापकर्म का बंध नहीं करता है ? आचार्य ने पूछा -- इसका क्या कारण है ? प्रवादी बोला - जिसके मन, वचन और काया पापमय हो उसे ही मन, वचन और काया जनित पापकर्मों का बन्ध होता है। जो हिंसक है, मन वाला है और विचारपूर्वक मन, वचन और काया से प्रवृत्ति करता है अन्ततः स्वप्नदर्शक जितनी चेतना जिसमें है ऐसे गुणवाले व्यक्ति ही पापकर्म का संचय करते हैं । प्रवादी ने आगे कहा- जिसके मन-वचन काया पाप करने में लगे हुए नहीं हैं, जो हिंसा नहीं करता है, जिसके मन नहीं है, जो विचारपूर्वक मन-वचन-काया की प्रवृत्ति नहीं " Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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