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________________ क्रिया-कोश जिस प्रकार हिंसा--प्राणातिपात के सम्बन्ध में प्रतिपादन किया गया है उसी प्रकार मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य शेष पापकर्मों को नहीं करते हुए भी जीव के प्रत्याख्यान के अभाव में उन पापों की अपेक्षा अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है। यहाँ इस अप्रत्याख्यान अर्थात् प्रत्याख्यान के अभाव से लगने वाली क्रिया का दार्शनिक तर्कों के आधार पर विवेचन है । ] नोट:-अप्रत्याख्यान क्रिया का विवेचन आरम्भिकी क्रियापंचक (क्रमांक ६५) में भी देखो। १६.६.१ आत्मा और अप्रत्याख्यान :-- आया अपञ्चक्खाणीयावि भवइ। -सूय० श्रु २ । अ४ ! सू १ । पृ० १६६ आत्मा अप्रत्याख्यानी भी होती है। प्रत्याख्यान---त्याग देना, छोड़ देना । पाप कर्मों का प्रत्याख्यान करना--पाप कर्म नहीं करने का संकल्प----प्रतिज्ञाभावना---विचार करना । मैं पाप कर्म नहीं करूँगा--ऐसी भावना होना-पापकर्म का प्रत्याख्यान करना है । जिस आत्मा के 'पाप कर्म नहीं करूंगा'---ऐसा संकल्प-प्रतिज्ञा-भावना-विचार नहीं है वह आत्मा अप्रत्याख्यानी है । आत्मा प्रत्याख्यानी भी होती है, अप्रत्याख्यानी भी होती है । .१६.६.२ अप्रत्याख्यानी जीव और पापकर्मबन्धन : (क) स्थापना :--अप्रत्याख्यानी जीव पापकर्म का बंध करता है : सुयं मे आउसं । तेणं भगवया एवमक्खायं-- इह खलु पञ्चपखाण-किरिया--- णामझयणे तस्स णं अयम? पन्नत्ते --"आया अपञ्चक्खाणी याचि भवइ, आया अकिरिया कुसले यावि भवइ, आया मिच्छासंठिए यावि भवइ, आया एगंतदंडे यावि भवइ, आया एगंतबाले यावि भवइ, आया एगंतसुत्ते यावि भवइ, आया अवियार-मण-वयण-कायवक्के यावि भवइ, आया अप्पडिह्य अपञ्चक्खायपावकम्मे यावि भवर, एस खलु भगवया अक्वाए असंजए, अविरए, अप्पडियपच्चक्खायपावकम्मे, सकिरिए, असंवुडे, एगंतदंडे, एगंतवाले, एगंतसुत्त से बाले अवियार-मण-वयण-कायवक्के सुविणमवि ण पस्सइ, पावे य से कम्मे कज्ज । -सूय० श्रु २ । अ ४ । सू १ । पृ० १६६ आचार्य ने स्थापना की कि आत्मा अप्रत्याख्यानी, अकर्तव्यकुशल, मिथ्याविश्वास वाली, दूसरों को एकान्त कष्ट पहुँचाने वाली, एकान्त अज्ञानी, सोई हुई या मूढ़, मन-वचन "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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