SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रिया - कोश '१६३ भेदों की परिभाषा / अर्थ १ जीव अपश्चक्खाण किरिया क्रिया | जीवविषये प्रत्याख्यानाभावेन यो बन्धादिव्यापारः सा जीवाप्रत्याख्यान- ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका जीव के सम्बन्ध में प्रत्याख्यान के अभाव से होने वाली क्रिया जीव-अप्रत्याख्यानकिया होती है । २ अजीव - अपचक्खाणकिरिया क्रियेति । यदजीवेपु - मद्यादिष्वप्रत्याख्यानात् कर्मबन्धनं सा अजीवाप्रत्याख्यान- ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका अजीव अर्थात् मद्य आदि अजीव वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रत्याख्यान के अभाव से होने वाली क्रिया अजीव अप्रत्याख्यानक्रिया कहलाती J * १६४ जीव तथा अप्रत्याख्यानक्रिया की समानता :-- (क) से णू भन्ते । हल्थिस्स य कुंथुस्स य सभा चेव अपचक्खाणकिरिया कज्जइ ? कज्जइ । हंता, गोयमा ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य जाव कज्जइ । सेकेण्णं भंते ! एवं वुश्च्चइ जाव कज्जइ ? गोयमा ! अविर पडुच, से तेणटुणं जाव कज्जइ । - भग० श ७ । उ८ प्र ६ । प्र० ५२२ (ख) से पूर्ण भंते! सेट्ठियरस य, तणुयस्स य, किवणस्स य, खत्तियस्स य समं चैव अपचक्खाणकिरिया कजइ ? हंता, गोयमा ! सेट्ठियरस य, जाव ( खत्तियरस य समं चेव ) अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ । सेकेण भंते ! अविर डुच, से तेणणं गोयमा ! एवं कुञ्चर सेट्ठियम्स य, तगुयस्स य, जाव--भग० श १ । उ६ । प्र३०१-२ | पृ० ४१३ ४३ अविरति की अपेक्षा - सेठ, गरीब, कृपण, क्षत्रिय (राजा), हाथी तथा कुंथु-कीट सब को समान अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है । * १६५ निक्षेपों की अपेक्षा से अप्रत्याख्यान क्रिया का विवेचन णामंठवणादविए अइच्छ पडिसेहए य भावे य । एसो पश्चक्खाणस्स छव्विहो होइ नियखेवो ॥ "Aho Shrutgyanam" --:
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy