________________
क्रिया - कोश
(च) परिग्रहाविनाशार्था स्यात् पारिग्रहिकी क्रिया ।
- श्लोवा अ ६ / सू ५ / गा २४ / ० ४४% परिग्रह अर्थात् धर्मोपकरण को छोड़ कर अन्य वस्तुओं को अपनाना तथा धर्मोपकरण में भी आसक्ति जिसका प्रयोजन हो वह पारिग्रहिकी क्रिया कहलाती है |
'१४२ भेद
एवं परिग्गहियावि ( परिग्गहिया किरिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा - जीवपरिग्गहिया चैव अजीवपरिग्गहिया चेव ) ।
--ठाण पारिग्रहिकी क्रिया के दो भेद होते हैं, पारिग्रहिकी ।
३७
'१४३ भेदों की परिभाषा / अर्थ— १ जीव पारिग्रहिकी जीवपरिग्रहप्रभवत्वात् तस्या इति भावः ।
-ठाण स्था र उ १ ! सू ६० । टीका जीव परिग्रह के निमित्त से होनेवाली किया जीव पारिग्रहिकी कहलाती है । '२ अजीव पारिप्रहिकी
स्था २ । ३१ । सू ६० पृ० १८६ यथा— जीवपारिग्रहिको तथा अजीव
अजीव परिग्रहप्रभवत्वात् तस्या इति भावः ।
- ठाण० स्था २ । उ १ । सू ६० । टीका अजीव परिग्रह के निमित्त से होने वाली किया अजीवपारिग्रहिकी कहलाती है । नोट :-- पारिग्रहिकी क्रिया का विवेचन आरम्भिकी पंचक ( क्रमांक ६५ ) में भी
:―
देखो ।
१४४ पारिग्रहिकी क्रिया और जीवदण्डक
(क) अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाश्वाएणं किरिया कज्जइ ? हंता अस्थि xxx | एगिदिया जहा जीवा तहा भाणियच्चा जहा पाणाश्वाए तहा xxx परिग्गहे ।
(देखो २२४)
भग० श १ । उ ६ । प्र २०६ से २१५ | पृ० ४०३ (ख) अस्थि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जइ ? हंता ! अस्थि । कम्हि णं भंते! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जइ ? गोयमा ! सव्वदव्वेसु एवं नेरइयाणं जाव वैमाणियाणं । -- पण ० प २२ । सू ३ | १० ४७६ जीव परिग्रह की क्रिया सब द्रव्यों के विषय में करते हैं । परिग्रह की क्रिया यदि व्याघात नहीं हो तो छओं दिशाओं को और व्याघात होने से कदाचित तीन दिशाओं को,
" Aho Shrutgyanam"