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गा.-१४
बन्धशतकप्रकरणम्
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एयद्दारस्स पयं होइ तहा हेउणो य किर दुहिया । सामन्ना य विसेसा होइ जहा इइ दारे तु ॥१३२॥ अट्ठण्हं कम्माणं विसेसओ बंधहेउ (णंतरच्च) । पडणीयमंतराइय इच्चाईहिं उ गाहाहि ॥१३३॥ वन्निज्जस्संति तओ इह सामत्था उ लब्भई एवं । सामन्नबंधहेऊ अट्ठहवि एत्थ कम्माणं ॥१३४॥ एक्केवगुणट्ठाणे इह भणियव्वं ति तो इमं भणइ । चउपच्चइओ बंधो इच्चाईगाहजुयलं ति ॥१३५॥ सामन्नबंधहेऊ मिच्छत्तं अविरई कसाया य । जोगा य तत्थ पढमे गुणम्मि चउपच्चओ बंधो ॥१३६॥ मिच्छारहिओ उ उवरिमगुणतिगे पंचमे तिपच्चइओ । किंतु तर्हि जो दुहओ हेऊ सो मीसओ होइ ॥१३७॥ जेण किर पंचमगुणं विरयाविरयं तओ इमं भणियं । मीसगबीओ तिचउक्कसायजोगाभिहा हेऊ ॥१३८॥ हुति उ पुन्ना जह संभवेण छट्ठाइसुहुमयंतेसु । तिचउत्था दो हेऊ तिहं उवसंतमाईणं ॥१३९॥ एगो उ जोगपच्चयबंधो होई अबंधगु अजोगी । मिच्छाईहेऊणं पुण एए उत्तरपभेया ॥१४०॥ मिच्छत्ताविरइकसायजोगभेयाण हुँति जहसंखं । पणबारसपणवीसं पनरसभेया गुणेसाह ॥१४१॥ पणपन्न पन्न तिय छहियचत्त इगुचत्त छक्कचउसहिया । दुजुया य वीस सोलस दस नव नव सत्त हेऊओ ॥१४२॥ जप्पच्चइओ बंधो इयदारं अवसियंति होइ जहा । इय दारं वन्नेमी एयस्सत्थो इमो होइ ॥१४३॥
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