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बन्धशतक प्रकरणम्
गेहत्थत्तं तदुवरि जह संभवओ उ ते नववओगा । पडिवन्नम्मि चरित्ते मणनाणजुया दस हवंति ॥५८॥ तदुवरि जह संभवओ चरित्तिणो वच्छरे अइक्कते । केवलियनाणदंसणदुगसहिया बारस हवंति ॥५९॥ अप्पज्जेयरभेया दुहा जीवा तहि अपज्जओ दुविहो । लद्धीए करणेण य तस्स सरूवं इमं भणियं ॥६०॥ अपज्जत्तो दुविहो लद्धिअपज्जत्तकरणअपज्जत्तो । तत्थ य जो अप्पज्जत्तएव कालं किर करेइ ॥ ६१ ॥ न पुणो पज्जत्तीओ पूरिस्सइ सो उ लद्धि पज्जत्तो । जो पुण सरीरइंदियमाईणि उकरणसन्नाणि ॥६२॥ नो अज्जवि निव्वत्तइ निव्वत्तिस्सइ य पुण पुरो नियमा । न मरिस्सइ अपज्जत्तो करणोऽपज्जत्तओ सो उ ॥ ६३ ॥ सुरनेरइया नियमा करणापज्जत्तया सया हुंति । मणुयगईया दुविहा वि हुंति तिरिया वि एमेव ॥ ६४॥
साम्प्रतं तेष्वेव जीवस्थानेषु योगान् प्रतिपादयन्नाह —
नवसु चक्के एक्के जोगा एगो य दोन्नि पन्नरस । तब्भवगएसु एए भवंतरगएसु काओगो ॥७॥
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गा०-७
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